14 नवंबर, 2015

खिली धूप

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खिली धूप
स्पर्श मद मंद वायु बेग का
ले चला मुझे
स्वप्निल आकाश में
वर्तमान हुआ धूमिल
जीने लगा
 यादों के साए में
यही है भेद
सत्य और कल्पना में
सत्य जो भी रहा हो
कल्पना तो महान है |
आशा

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