30 नवंबर, 2015

यादें सज ही जातीं हैं


 
मेरी डायरी के कागज़
  लिखे गए  या रहे अघूरे  
कुछ कोरे रहे  भी तो क्या 
यादों की बयार  साथ लाये 
र्रूपहली यादों की महक 
सुनहरी धूप  की गमक 
मन को बहकाए
वह अनियंत्रित हुआ जाए
रची बसी खुशबू गुलाब की 
यादों को दोहराने लगी 
किसी की याद सताने लगी 
बीता कल अब समक्ष था
दिया गुलाब का फूल था
मनोभाव जताने को 
बड़े प्यार से जिसे सहेजा 
अपनी डायरी के बीच में
व्यस्तता इतनी रही
 वह  याद न आई
यादें विस्मृत होने लगी 
वर्तमान में खोने लगीं
आज अचानक हाथ आई 
वही पुरानी डायरी
गुलाब का फूल तो सूख गया  
पर महक अभी तक बाक़ी है
पन्नों में रच बस गई है
यादों में धुलमिल गई  है
मंथर गति से मुझ तक आकर 
यादें सज ही जाती हैं
 दिल में जगह बनाती हैं |
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आशा

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