29 मार्च, 2019

नयनों की सुनामी




दो नैनों के 
नीले समुन्दर में 
तैरती दो सुरमई मीन 
दृश्य मनमोहक होता |
पर जब लहरें उमड़तीं 
पाल पर करतीं वार 
अनायास सुनामी सा कहर टूटता 
थमने का नाम नहीं लेता ! 
है ये कैसा मंज़र 
न जाने कब 
नदी का सौम्य रूप 
नद में बदल जाता |
अश्रु पूरित आखों से 
 जल का रिसाव कम न होता  
हृदय विदारक पल होता 
जब गोरे गुलाबी कपोलों पर
अश्रु आते, सूख जाते 
निशान अपने छोड़ जाते  ! 
आशा 

9 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    १ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. श्वेता जी बहुत बहुत धन्यवाद मेरी रचना शामिल करने के लिए |उम्दा संकलन |

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  2. है ये कैसा मंज़र
    न जाने कब
    नदी का सौम्य रूप
    नद में बदल जाता |
    बहुत-बहुत सुन्दर लिखा है आपने। बहुत-बहुत बधाई आदरणीय ।

    जवाब देंहटाएं
  3. टिप्पणी के लिए धन्यवाद सर |

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  4. बहुत सुन्दर रचना दीदी जी
    सादर

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  5. वाह आशा दीदी, हमेशा की तरह सरल, सुबोध, सुंदर अभिव्यक्ति

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  6. वाह ! बहुत ही खूबसूरत रचना ! नयनों की इस सुनामी में कौन डूबना नहीं चाहेगा !

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