बच्चों की शरारतों की
बचपन की प्यारी बाते
जब भी याद आती हैं
हंसने के लिए काफी हैं|
जब अति हो जाती है
गुस्सा बहुत आता है
पर भोली सूरत देख कर
वह कहीं खो जाता है |
जब भी एक पर करते क्रोध
दूसरा बचाने आ जाता
अरे छोड़ो मां अभी बच्चा है
कहकर उसे बचा ले जाता |
फिर बाहर जा कर हँसी के मारे
लोटपोट होता जाता
कहता मां भी कितनी भोली है
जल्दी से पट जाती है |
शरारत और बचपन का
आपस में रिश्ता है अनुपम
दौनों एक दूसरे के अनुपूरक
अधूरे एक दूसरे के बिना |
आशा
आशा
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 01/04/2019 की बुलेटिन, " मूर्ख दिवस विशेष - आप मूर्ख हैं या समझदार !?“ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात
हटाएंसूचना हेतु आभार सर |
बचपन जीते हुए बच्चों को देखने का आनंद ही अलग है ...
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना है ...
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद सर |
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (03-04-2019) को "मौसम सुहाना हो गया है" (चर्चा अंक-3294) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सूचना हेतु आभार सर |
हटाएंआशा
बहुत ही सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रीना जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंआशा
बहुत प्यारी कविता
जवाब देंहटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद अनीता जी |
हटाएंआशा
बचपन के मधुर पलों को स्मरण कराती बेहतरीन प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंआशा