दो नैनों के
नीले समुन्दर में
नीले समुन्दर में
तैरती दो सुरमई मीन
दृश्य मनमोहक होता |
पर जब लहरें उमड़तीं
पाल पर करतीं वार
अनायास सुनामी सा कहर टूटता
थमने का नाम नहीं लेता !
है ये कैसा मंज़र
न जाने कब
नदी का सौम्य रूप
नद में बदल जाता |
अश्रु पूरित आखों से
जल का रिसाव कम न होता
अश्रु पूरित आखों से
जल का रिसाव कम न होता
हृदय विदारक पल होता
जब गोरे गुलाबी कपोलों पर
अश्रु आते, सूख जाते
निशान अपने छोड़ जाते !
आशा
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
१ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
श्वेता जी बहुत बहुत धन्यवाद मेरी रचना शामिल करने के लिए |उम्दा संकलन |
हटाएंहै ये कैसा मंज़र
जवाब देंहटाएंन जाने कब
नदी का सौम्य रूप
नद में बदल जाता |
बहुत-बहुत सुन्दर लिखा है आपने। बहुत-बहुत बधाई आदरणीय ।
टिप्पणी के लिए धन्यवाद सर |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना दीदी जी
जवाब देंहटाएंसादर
हटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद |
धन्यवाद टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंवाह आशा दीदी, हमेशा की तरह सरल, सुबोध, सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत ही खूबसूरत रचना ! नयनों की इस सुनामी में कौन डूबना नहीं चाहेगा !
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