16 दिसंबर, 2009

शिक्षक से

जीवन से होकर हताश
पलायन का है क्यों विचार
बन कर तुम  नींव का पत्थर
दो ज्ञान हमें नव जीवन का |
आलस्य को त्याग कर
सुस्वप्न को साकार कर
भावी वृक्ष को साकार कर
दो ज्ञान हमें निज संबल का |
समय की नब्ज को पहचान 
सत्य को समाज में उभर कर
तंग घेरों से उसे निकाल कर
दो ज्ञान हमें नवचेतन का|

आशा

1 टिप्पणी:

  1. बहुत अच्छे विचार हैं । हर शिक्षक को इनसे प्रेरणा लेनी चाहिये और अपने कर्तव्य को पहचानना चाहिये । एक सार्थक कविता ।

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