01 जनवरी, 2010

नूतन अभिनंदन


नूतन हो नव वर्ष
मैं सब का अभिनंदन करने आया हूँ
आज पा सुअवसर
तुम्हारा नेह माँगने आया हूँ |
अधिक समय तक रहा सुप्त
छिपा कर प्यार रहा उन्मुक्त
स्वयं को जान, अपनों को पहचान 
नेह निमंत्रण देने आया हूँ
हे सुभगे मैं तुम्हें मनाने आया हूँ |
मुझसे रूठी सारी खुशियाँ
जबसे  तुमसे रहा दूर
इस अनजानी दूरी को
मैं स्वयं मिटाने आया हूँ
नूतन वर्ष की इस बेला में
मैं प्यार बांटने  आया हूँ |
अपनी कमियों को पहचान
सपनों में भी उनसे रहा दूर
अपनों ने मुझे भुलाया 
 मन में  मेरे शूल चुभाया 
 फासला  और बढ़ाया 
पर  मैं इस अंतर को 
सह नहीं पाया
रह न सका दूर सब से
चाहता दूर मतभेद करना
नूतन अभिनंदन हे सुभगे
मैं तुम्हें मनाने आया हूँ |
आज सुअवसर देख 
तुम्हारा नेह पाने आया हूँ |


आशा

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना है । बधाई । नव वर्ष पर मेरा अभिनन्दन भी स्वीकार करें ।

    जवाब देंहटाएं
  2. आनंद बाँटती, खुशियाँ बिखेरती और नव वर्ष के अभिनन्दन स्वरुप सौहार्द्र एवं प्रेम का संदेश संचारित करती आत्मीयता के रंग में डूबी एक बहुत ही सुन्दर रचना ! आश्चर्य है मुझसे मिस कैसे हो गयी ! बहुत प्यारी कविता बधाई !

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: