मन चाहता है  कुछ नया लिखूँ 
क्या लिखूँ ,कैसे लिखूँ ,किस पर लिखूँ 
हैं प्रश्न अनेक पर उत्तर एक
कि   प्रयत्न करूँ |
यत्न कुछ ऐसा हो कि 
बन जाए एक कविता 
कहानी हो ऐसी कि 
मै बन जाऊँ एक जरिया 
सयानी बनूँ 
 नया ताना बाना बुनूँ
कुछ पर अपना अधिकार चुनूँ 
फिर ढालूँ  उसे अपने शब्दों में 
कृतियों की झंकार सुनूँ
मन मेरा चाहता है
कुछ नया लिखूँ|
नया नहीं कुछ खोज सकी 
जो है  उस पर ही अड़ी रही 
आसमान के रंगों में ही
मेरी कल्पना सजग रही |
स्याह रंग जब मन पर छाया 
बहुत उदास दुखों का साया सा 
चेहरा नजर आया 
मन मेरा हुआ  उदास 
सोचा उस पर ही लिखूँ
जब अंधकार से घिरा वितान 
दिखे विनाशक दृश्य अनाम 
अनजाने भय का हुआ अवसान 
इससे भी पूरा ऩहीं हुआ अरमान 
क्या लिखूँ , कैसे लिखूँ
यही सोच रहा अविराम |
सुबह की सुनहरी रूपल झलक 
ले चली मुझे कहीं दूर तक 
एक प्यारा सा चेहरा पास आया
थामा हाथ  बना साया 
उसने ही मन को उकसाया 
कुछ नया लिखूँ कुछ नया करूँ
दुनिया रंग रंगीली है 
इसमें रमना भी ज़रुरी है 
क्या इस पर भी कुछ लिखूँ !
मैं सोचती हूँ कुछ नया लिखूँ |
आशा
 
 
उस प्यारे से चहरे को सलाम जिसने आपको इस रचनाशील कर्म के लिये प्रेरित किया । मेरी ओर से उसे अवश्य धन्यवाद दीजियेगा । वैसे हमारे आस पास इतने विषय बिखरे पड़े हैं कि लेखनी को कभी विराम मिलने की गुंजाइश ही नहीं रहती ।
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