06 जनवरी, 2010

अंतिम घड़ी

गीत गाती है
गुनगुनाती है
बातों बातों में झूम जाती है
फिर क्यूँ उन लम्हों को
ज़िंदगी झुठलाती है
जब अंतिम घड़ी आती है |
बचपन का कलरव
यौवन का मधुरव
बन जाता है रौरव
मन वीणा टूट जाती है
जब अंतिम घड़ी आती है |

आशा

2 टिप्‍पणियां:

  1. इतने नकारात्मक विचारों को क्यों मन में आने देती हैं । प्रकृति का जो विधान है वह अटल है उसे घटित होने से कोई नहीं रोक सकता लेकिन उसके डर से हर पल हर लम्हा डरना अनुचित है । अंतिम घड़ी जब आयेगी आ ही जायेगी अभी हमारी मुट्ठी में जितनी घड़ियाँ हैं उनको भरपूर जीना ही हमारा अभीष्ट होना चाहिये ।
    My candle burns at both the ends,
    And it will not last the night.
    But Ah my friends ! and Oh my foes !,
    It gives a lovely light.

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  2. बचपन का कलरव ,
    योवन का मधुरव ,
    बन जाता है रौरव ,
    मन वीणा टूट जाती है ,
    जब अंतिम घड़ी आती है |

    bahut sahi kaha apne....

    man ki vinaa pe koi sur nahi sazta hai antim ghaid me har kisi ko apne ant ka shayad ahsaas ho jata hai aisa suna hai mene...
    achi lagi apki ye sachhayee bhari rachna

    जवाब देंहटाएं

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