23 जनवरी, 2010

कर्त्तव्य बोध

कितने दिन बीत गये अब तो ,
भारत को आज़ाद हुए ,
फिर भी हम न समझ पाये ,
कि क्या कर्तव्य हमारे हैं ,
अधिकार सभी चाहे हमने ,
जिस हद तक जा सके गये ,
रोज-रोज बसों को तोड़ा ,
और चक्का जाम किया,
लाठी खाई, घूँसे खाये ,
पर अपना अधिकार नहीं छोड़ा ,
नेता हमने ऐसे खोजे ,
जो खुद को भी न समझ पाये ,
लोक सभा में जूते चप्पल ,
उनसे से भी न वे बच पाये ,
माइक अक्सर टूटा करते ,
व्यवधान सदा ही होते हैं ,
जब आता प्रश्न अधिकारों का ,
सभी एक जुट होते हैं ,
जब जब यह सब देखा हमने ,
शर्मसार हम होने लगे ,
कैसे नेता चुने गए हैं ,
यह प्रश्न मन में उठने लगे ,
बच्चे इससे क्या पायेंगे ,
केवल अधिकार ही जतालायेंगे ,
जब कर्तव्य सामने होगा ,
उससे वे बचना चाहेंगे ,
अधिकारों कि सूची लम्बी ,
चाहे जैसे उनको पायें ,
कर्तव्य अगर कोई हो उनका ,
उसे सदा ही दूर भगायें ,
आज तक हम विकासशील हैं ,
विकसित देशों से दूर बहुत ,
नव स्वतंत्र देशों से भी पिछड़े ,
हम जहाँ से चले थे वहीं अटके ,
फिर भी कर्तव्य बोध से बचते रहे ,
अपना सोच न बदल पाये ,
हम में से सबने यदि ,
एक कर्तव्य भी चुना होता
हम भी विकसित हो जाते ,
भारत विकसित देश कहाता |

आशा

8 टिप्‍पणियां:

  1. जिस दिन सभी अपना कर्तव्य पहचानने लगेंगे और अधिकारों का लोभ छोड़ देंगे उसी दिन से भारत का विकास सम्भव हो जायेगा । विडम्बना यही है कि क्या नेता क्या अधिकारी सभी निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिये देशहित की प्राथमिकता को भुला देते हैं और ऐसे नेताओं को चुनने के बाद जनता बेचारी पाँच साल तक हाथ मलती रह जाती है ।
    आँखें खोलने वाली बहुत सार्थक कविता । बधाई ।

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  2. वाह ...बहुत ह‍ी अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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  3. कर्तव्य बोध का एहसास यदि अब भी नहीं हुआ तो सकारात्मक परिवर्तन की अपेक्षा बेमानी होगी।

    सादर

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  4. chuna to hamane imandar samajh kar hi lekin rajneeti kee hava ne unhen apane rang men dhaal liya aur ham thage se dekhate rah jate hain.

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  5. सच कहा अधिकारों की बात सभी करते हैं
    पर कर्तव्यों की नहीं ..सार्थक रचना

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