27 जनवरी, 2010

रिश्ते

जीवन सरल नहीं होता
हर कोई सफल नहीं होता
यदि किताबों से बाहर झाँका होता
अपने रिश्तों को आँका होता
कठिन घड़ी हो जाती पार
जीवन खुश हाल रहा होता |
पहले भी सब रहते थे
दुःख सुख भी होते रहते थे
इस समाज के नियम कड़े थे
फिर भी जीवन अधिक सफल थे |
सुख दुःख का साँझा होने से
कभी अवसाद नहीं होता था
जीवन जीना अधिक सहज था
पर आज जीना हुआ दूभर |
कभी सोचा है कारण क्या
हम रिश्तों को भी न समझ पाए
केवल अपने में रहे खोये
संवेदनायें मरने लगीं
और अधिक अकेले होने लगे |
रिश्तों की डोर होती नाज़ुक
अधिक खींच न सह पाती
यदि समझ न पाए कोई
रिश्तों को बिखरा जाती |
मन पीड़ा से भर उठता
कोई छोर नजर नहीं आता
ग्रहण यदि लग जाये
घनघोर अँधेरा छा जाता |
जिसने रिश्तों को समझा
गैरों को भी अपनाया
वही रहा सफल जीवन में
मिलनसार वह कहलाया |

आशा


4 टिप्‍पणियां:

  1. यदि किताबों से बाहर झाँका होता ,
    अपने रिश्तों को आंका होता ,
    कठिन घड़ी हो जाती पर ,
    जीवन खुश हाल रहा होता ,
    बहुत सुन्दर सन्देश देती रचना के लिये बधाई

    जवाब देंहटाएं
  2. रिश्तों के महत्त्व को उजागर करती बहुत ही सार्थक रचना | बधाई ! काश इस रचना को पढ़ कर सभी इसके सकारात्मक सन्देश को आत्मसात कर पायें और अपना आत्म निरीक्षण कर रिश्तों को सही अर्थों के साथ समझने का संकल्प ले पायें |

    जवाब देंहटाएं
  3. धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: