18 मार्च, 2010

संगिनी

वह दूर खड़ी प्रस्तर प्रतिमा सी ,
एलोरा की मूरत है ,
बेहिसाब सुंदरता की ,
सहेजी गयी धरोहर है |
ना जाने कब अनजाने में ,
मन उस पर प्यार लुटा बैठा ,
सभी मुश्किलें भूल गया ,
अपनी उसे बना बैठा ,
ना कोई शिकवा न ही शिकायत,
ना कभी भाग्य पर रोती है,
सारे सुख दुख समेट बाहों में,
इत्मीनान से सोती है,
कैसी भी कठिनाई आये,
हिम्मत मुझे दिलाती है,
श्रम कण यदि उभरे माथे पर,
चुन-चुन उन्हें मिटाती है,
हर दिन होली है उसकी,
हर रात दीवाली आती है |
मीठी मुस्कान सदा अधरों पर,
सेवा भाव सदा नैनों में,
बेबाक बात मुख मन का दर्पण,
सदा विहँसती रहती है,
उसकी प्यारी न्यारी अदा,
मेरा मन हर लेती है,
तारों से माँग सजाती है,
चंदा की बिंदिया लगाती है,
सजी सजाई वह दुल्हन सी,
बेमिसाल हो जाती है,
हर रोज होली है उसकी,
हर रात दीवाली मनाती है,
हर काम सलीके का उसका,
मन क्यों ना हो केवल उसका,
गुण की खान कहूँ उसको,
या कहूँ चाँद का टुकड़ा,
कोई उपमा ना खोज पाया,
ये कैसी उसकी माया,
अपने मन मंदिर में मैं तो,
केवल उसे ही सजा पाया,
आने वाले कल का सपना,
उसके नैनों से झाँके,
जैसे ही उसको पाया,
भूल गया सब कुछ अब मैं,
वह है सुंदरता की मूरत,
कोई सहेजी गयी धरोहर है,
हर रोज होली है उसकी,
उसकी हर रात दीवाली है|

आशा

3 टिप्‍पणियां:

  1. क़िसकी इतनी प्रशंसा हो रही है ? बहुत उत्सुकता हो रही है उससे मिलने की और उसे देखने की ! सुन्दर भाव और बेबाक बयानी ! वाह वाह वाह !

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  2. सुन्दर भाव और बेबाक बयानी ! वाह वाह वाह !

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  3. कई रंगों को समेटे एक खूबसूरत भाव दर्शाती बढ़िया कविता...बधाई

    जवाब देंहटाएं

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