19 मार्च, 2010

बेटी आज की

पान फूल सी बेटी मेरी ,
बुद्धि गजब की रखती है ,
भरा हुआ सलीका उसमें ,
बेबाक बात वह करती है ,
दृढ निश्चय है संबल उसका ,
जो ठाना कर लेती है ,
आत्म बल से भरी हुई है ,
सारे निर्णय लेती है ,
कोई क्षेत्र नहीं छूटा
जिसमें वह ना खरी उतरी ,
ऐसी कोई विधा ना छोड़ी
सब में रस वह लेती है ,
क्यों रहे किसी से पीछे ,
उसका मन यह कहता है ,
जो चाहे जैसा चाहे ,
पाकर ही दम लेती है ,
आरक्षण से कुछ भी पाना ,
यह नहीं स्वीकार उसे ,
माँ की नजरों से यदि तोलें ,
गुण सम्पन्न वह लगती है ,
समाज यदि नहीं बदले ,
आरक्षण नाकारा है ,
ऐसा सोच लिए मन में ,
वह कठिन डगर पर चलती है ,
नारी उत्थान नारी जागरण
सारे खोखले नारे हैं ,
यदि परिवर्तन नहीं सोच में ,
ये सारे शब्द बेचारे हैं ,
आरक्षण की बैसाखी ले कर ,
हिमालय पार नहीं होता ,
यदि दरार बड़ी हो तो ,
नारी उत्थान नहीं होता ,
पान फूल सी बेटी मेरी ,
सोच-सोच यह थकती है ,
कैसे बदले सोच हमारा ,
यह एक कठिन समस्या है ,
विषम परिस्थितियों में भी वह ,
नहीं किसी से डरती है |


आशा

3 टिप्‍पणियां:

  1. पान फूल सी बेटी मेरी ,
    बुद्धि गजब की रखती है ,
    भरा हुआ सलीका उसमें ,
    बेवाक बात वह करती है ,

    सुंदर शब्दों के साथ.... बहुत सुंदर अभिव्यक्ति....

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  2. हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  3. बहुत ही शुभ संकेत एवं सन्देश देती शानदार कविता ! इसी तरह आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता के जज्बे से हर नारी प्रेरित हो जाए तो आरक्षण की बैसाखी की उसे कभी ज़रूरत नहीं पड़ेगी ! बड़ी सारगर्भित और गंभीर रचना ! बधाई !

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