स्वत्व पर मेरे पर्दा डाला ,
मुझको अपने जैसा ढाला ,
बातों ही बातों में मेरा ,
मन बहलाना चाहा ,
स्वावलम्बी ना होने दिया ,
अपने ढंग से जीने न दिया |
तुमने जो खुशी चाही मुझसे ,
उसमें खुद को भुलाने लगी ,
अपना मन बहलाने लगी ,
अपना अस्तित्व भूल बैठी ,
मन की खुशियाँ मुझ से रूठीं ,
मैं तुम में ही खोने लगी |
आखिर तुम हो कौन ?
जो मेरे दिल में समाते गए ,
मुझको अपना बनाते गए ,
प्रगाढ़ प्रेम का रंग बना ,
उसमें मुझे डुबोते गए |
पर मैं ऊब चुकी हूँ अब ,
तुम्हारी इन बातों से ,
ना खेलो जज़बातों से,
मुझको खुद ही जी लेने दो ,
कठपुतली ना बनने दो ,
उम्र नहीं रुक पाती है ,
जीने की ललक अभी बाकी है |
आशा
स्वावलम्बी ना होने दिया ,
जवाब देंहटाएंअपने ढंग से जीने न दिया |
तुमने जो खुशी चाही मुझसे ,
उसमें खुद को भुलाने लगी ,
अपना मन बहलाने लगी ,
अपना अस्तित्व भूल बैठी ,
एक ....सुन्दर रचना
http://athaah.blogspot.com/
asha mam
जवाब देंहटाएंhello
i saw your appreciative comment on naari blog thank you
i loved this poem and have posted it on naari kavita blog at this link
http://indianwomanhasarrived2.blogspot.com/2010/04/blog-post_30.html
प्रिय रचना जी ,
जवाब देंहटाएंअपनी कविता नारी ब्लॉग पर देखी|आपने मुझे इस लायक समझा
इसके लिए आपको बहुत साधुवाद |
आशा
BEAUTIFUL
जवाब देंहटाएंएहसास की यह अभिव्यक्ति बहुत खूब
जवाब देंहटाएंasha mam
जवाब देंहटाएंcan i please have your emil id so that i can send invite for the blogs to you and you can please join them and share your views there
you are pretty much the age of my mother and i would be happy and greatful if you could join our community blogs
with due regds
Apko bahut bahut badhai Nari blog par apaki kavita publish hone ke liye ! kavita sachmuch shandar hai aur usakachuna jana bahut achchha laga !
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