30 अप्रैल, 2010

जीने की ललक अभी बाकी है

स्वत्व पर मेरे पर्दा डाला ,
मुझको अपने जैसा ढाला ,
बातों ही बातों में मेरा ,
मन बहलाना चाहा ,
स्वावलम्बी ना होने दिया ,
अपने ढंग से जीने न दिया |
तुमने जो खुशी चाही मुझसे ,
उसमें खुद को भुलाने लगी ,
अपना मन बहलाने लगी ,
अपना अस्तित्व भूल बैठी ,
मन की खुशियाँ मुझ से रूठीं ,
मैं तुम में ही खोने लगी |
आखिर तुम हो कौन ?
जो मेरे दिल में समाते गए ,
मुझको अपना बनाते गए ,
प्रगाढ़ प्रेम का रंग बना ,
उसमें मुझे डुबोते गए |
पर मैं ऊब चुकी हूँ अब ,
तुम्हारी इन बातों से ,
ना खेलो जज़बातों से,
मुझको खुद ही जी लेने दो ,
कठपुतली ना बनने दो ,
उम्र नहीं रुक पाती है ,
जीने की ललक अभी बाकी है |


आशा

7 टिप्‍पणियां:

  1. स्वावलम्बी ना होने दिया ,
    अपने ढंग से जीने न दिया |
    तुमने जो खुशी चाही मुझसे ,
    उसमें खुद को भुलाने लगी ,
    अपना मन बहलाने लगी ,
    अपना अस्तित्व भूल बैठी ,

    एक ....सुन्दर रचना

    http://athaah.blogspot.com/

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  2. asha mam
    hello
    i saw your appreciative comment on naari blog thank you
    i loved this poem and have posted it on naari kavita blog at this link


    http://indianwomanhasarrived2.blogspot.com/2010/04/blog-post_30.html

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  3. प्रिय रचना जी ,
    अपनी कविता नारी ब्लॉग पर देखी|आपने मुझे इस लायक समझा
    इसके लिए आपको बहुत साधुवाद |
    आशा

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  4. एहसास की यह अभिव्यक्ति बहुत खूब

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  5. asha mam
    can i please have your emil id so that i can send invite for the blogs to you and you can please join them and share your views there
    you are pretty much the age of my mother and i would be happy and greatful if you could join our community blogs
    with due regds

    जवाब देंहटाएं
  6. Apko bahut bahut badhai Nari blog par apaki kavita publish hone ke liye ! kavita sachmuch shandar hai aur usakachuna jana bahut achchha laga !

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