कुछ ऐसी बात करो मुझसे ,
जो मेरे मन पर छा जाये ,
आहत पक्षी की तरह ,
मुझको भी जीना आ जाये |
आज मुझे छोड़ कर ,
तुम कैसे जा पाओगे ,
यह है एक ऐसा बंधन ,
जिसको ना तोड़ पाओगे |
प्रेम पाश में बाँध कर मेरे ,
खींचते चले आओगे ,
मुझ से बच कर दूर बहुत ,
आखिर तुम कहाँ जाओगे |
मैंने जो प्यार दिया तुमको
उसे कैसे झुठलाओगे ,
मुझ को दंश प्रेम का दे कर ,
तुम कैसे जा पाओगे |
मेरे साथ बिठाये हर पल ,
छाया बन कर साथ चलेंगे ,
यह निस्वार्थ प्रेम का बंधन ,
कैसे उसे भुला पाओगे |
आशा
हमेशा की तरह आपकी रचना जानदार और शानदार है।
जवाब देंहटाएंमेरे साथ बिताए हर पल ,
जवाब देंहटाएंछाया बन कर साथ चलेंगे ,...bhavpurn..
छाया बन कर साथ चलेंगे ,
जवाब देंहटाएंयह निस्वार्थ प्रेम का बंधन ,
बहुत सुन्दर रचना ...आपकी इस कविता को पढ़ कर ....मेरा साया फिल्म का वो गाना याद आ गया ..'तू जहाँ - जहाँ चलेगा मेरा साया साथ होगा ' बस इसी तरह प्रेम पर कुछ लिखते रहिये ....एक अच्छी रचना के लिए धन्यवाद
Beautiful poem. ek prabhavshali prastuti . very nice.
जवाब देंहटाएंसच कहा आपने निस्वार्थ प्रेम का बंधन कोई भुला ही नही सकता..आभार
जवाब देंहटाएंVERY GOOD!
जवाब देंहटाएंBUT.....!?
PREM ek bandhan nhi hai.
PREM ek sthiti hai mun ki.jo sahajata hai.hum abhi sahaj hai bhi kahan?
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