03 मई, 2010

यदि ऐसा होता


उपालंभ तुम देते रहे
हर बार उन्हें वह सहती रही
जब दुःख हद से पार हुआ
उसका जीना दुश्वार हुआ
कुछ अधिक सहा और सह न सकी
उसका मन बहुत अशांत हुआ
पानी जब सिर से गुजर गया
उसने सब पीछे छोड़ दिया
निराशा मन में घर करने लगी
जीने का मोह भंग हुआ
अपनी खुशियाँ अपने सुख दुःख
मुट्ठी में बंद किये सब कुछ
अरमानों की बलिवेदी पर
खुद की बली चढ़ा बैठी
जीते जी खुद को मिटा बैठी
दो शब्द प्यार के बोले होते
दिल के रहस्य खोले होते
जीवन में इतनी कटुता ना होती
वह हद को पार नहीं करती
सदा तुम्हारी ही रहती |


आशा

8 टिप्‍पणियां:

  1. इस छोटी सी रचना में आपने बहुत कुछ कह दिया।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  2. puri ek jindgi ka vrataant sama gaya isme.bas vo kahawat yad aa gayi...nari teri yahi kahani....

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  3. "दो शब्द प्यार के बोले होते ,
    दिल के रहस्य खोले होते ,
    जीवन में इतनी कटुता ना होती ,
    वह हद को पार नहीं करती"
    बस इतना ही चाहिए जो अक्सर नहीं मिलता सोच के लिए आभार

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  4. सुन्दर भाव लिए एक प्रभावशाली रचना ! प्यार के दो बोल बोलने में लोग कभी कभी इतनी देर कर देते हैं कि उनकी अहमियत और औचित्य दोनों पर ही प्रश्न चिन्ह लग जाता है ! एक सार्थक कविता के लिए बधाई !

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