उपालंभ तुम देते रहे
हर बार उन्हें वह सहती रही
जब दुःख हद से पार हुआ
उसका जीना दुश्वार हुआ
कुछ अधिक सहा और सह न सकी
उसका मन बहुत अशांत हुआ
पानी जब सिर से गुजर गया
उसने सब पीछे छोड़ दिया
निराशा मन में घर करने लगी
जीने का मोह भंग हुआ
अपनी खुशियाँ अपने सुख दुःख
मुट्ठी में बंद किये सब कुछ
अरमानों की बलिवेदी पर
खुद की बली चढ़ा बैठी
जीते जी खुद को मिटा बैठी
दो शब्द प्यार के बोले होते
दिल के रहस्य खोले होते
जीवन में इतनी कटुता ना होती
वह हद को पार नहीं करती
सदा तुम्हारी ही रहती |
आशा
इस छोटी सी रचना में आपने बहुत कुछ कह दिया।
जवाब देंहटाएंसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
puri ek jindgi ka vrataant sama gaya isme.bas vo kahawat yad aa gayi...nari teri yahi kahani....
जवाब देंहटाएंpoori zindagi baya kardi is kavita me sadar naman...
जवाब देंहटाएं"दो शब्द प्यार के बोले होते ,
जवाब देंहटाएंदिल के रहस्य खोले होते ,
जीवन में इतनी कटुता ना होती ,
वह हद को पार नहीं करती"
बस इतना ही चाहिए जो अक्सर नहीं मिलता सोच के लिए आभार
सुन्दर भाव लिए एक प्रभावशाली रचना ! प्यार के दो बोल बोलने में लोग कभी कभी इतनी देर कर देते हैं कि उनकी अहमियत और औचित्य दोनों पर ही प्रश्न चिन्ह लग जाता है ! एक सार्थक कविता के लिए बधाई !
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंएक सार्थक कविता के लिए बधाई !
जवाब देंहटाएंderi se aane ke liye mafi cahuga mummy ji
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