ऐ जिंदगी मेरी समझ से बहुत दूर हो तुम ,
रंगीन या बेरंग जीवन का कोई ,
झंकृत होता साज़ हो तुम ,
कोई सपना या कोई राज़ हो तुम ,
सभी सपने कभी साकार नहीं होते ,
हर राज़ के भी राज़दार नहीं होते ,
सारे पल खुशियों से भरे नहीं होते ,
आखिर तुम क्यूँ हो ऐसी,
मेरे सपने तो सजाती हो ,
पर यादों की परतों में छिपी रहती हो ,
मेरे सामने नहीं आतीं ,
मैं जानता हूँ अंत क्या होगा ,
पर हर क्षण को ,
जिंदगी की प्रतिच्छाया मानता हूँ ,
कभी तुम पूरनमासी तो कभी अमावस होती हो ,
तुम्हीं मेरी अपनी हो मुझ को समझती हो ,
मैं अपना अतीत भूल पाऊँ ,
यह होने भी नहीं देतीं ,
यदि मरना चाहूँ मुझे मरने भी नहीं देतीं ,
मेरे बिखरे हुए जीवन की ,
टूटी कड़ियों से बनी ,
जीवन के अनछुए पहलुओं
की कोई किताब हो तुम ,
या शायद मेरा भ्रम हो ,
दूर पहाड़ियों में ,
गूँजती हुई आवाज़ हो तुम ,
तुम कोई अनुत्तरित पहेली हो ,
जिसका शायद ही कोई हल हो ,
मैं आगे तो बढ़ता जाता हूँ ,
पर किसी दार्शनिक की तरह ,
किसी उतार चढ़ाव को देख नहीं पाता ,
फिर भी ऐ ज़िंदगी ,
अपने बहुत करीब पाता हूँ |
आशा
बहुत बढ़िया रचना..भावपूर्ण.
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट रचना ! प्रत्येक शब्द अर्थपूर्ण एवं अभिव्यक्ति अत्यंत प्रभावशाली ! अति सुन्दर !
जवाब देंहटाएंकाफी सुन्दर शब्दों का प्रयोग किया है आपने अपनी कविताओ में सुन्दर अति सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंसार्थल लेखन को बढावा दे और ऊल जुलूल पोस्टो पर प्रतिक्रिया से बचे.
सादर
हरि शर्मा
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