02 जून, 2010

पथिक से

ऐ पथिक सुगंध की चाह में ,
प्रेम के प्रवाह में ,
उस ओर तुम जाना नहीं ,
जहाँ काँटे बिछे हों राह में |
उन पुष्पों से दूरी रखना ,
जो शूलों के साथ पले हों ,
वे कहीं किनारा ना कर लें ,
और काँटे तुम्हें छलनी कर दें |
उन पुष्पों से बच के रहना ,
जो छूते ही बंद कर लें तुमको ,
पूरी तरह निगल जायें ,
आत्मसात तुम्हें कर जायें|
उस राह भी तुम ना जाना ,
छुईमुई के पौधे हों जहाँ ,
तुम उनके जैसे ना बन जाना ,
स्पर्श मात्र से ना सकुचाना ,
अपना अस्तित्व ना खो देना |
जिस राह में बाधा अनेक ,
बाधा को शूल न समझ लेना ,
शूर वीर बन आगे बढ़ना ,
एक लक्ष्य को अपनाना ,
सफलता तुम्हारे कदम चूमेगी ,
कीर्ति दिग्दिगंत में होगी |
ऐ पंथी मुझे भूल न जाना ,
यादों को न मिटने देना ,
अमित निशान जो पड़े पंथ पर ,
धूमिल उन्हें न होने देना ,
ना ही कभी मिटने देना |
तुममें साहस बहुत अधिक है ,
कुछ करने का जज़्बा भी है ,
उसे न कभी कम होने देना ,
गति को क्षीण न होने देना |
बीते कल को भूल न जाना ,
सब को सुरभित करते जाना |
आशा से रिश्ता रखना ,
निराशा पास न आने देना,
यदि कभी देखो मुड़ कर पीछे ,
तो अलविदा न कहना |


आशा

5 टिप्‍पणियां:

  1. निराशा पास ड़ न आने देना ,
    मुड़ कर चाहे कभी न देखो ,
    पर अलविदा न कहना | waah adbhut bahut sundar

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  2. atyant sundar aur abhinav bhaav se bhari kaavyarachnaa,,,,,,,,,,,,,,

    aapka dhnyavaad ise prakaashit karne ke liye...

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  3. आशा से रिश्ता रखना ,
    निराशा पास न आने देना,
    यदि कभी न देखो मुड़ कर पीछे ,
    पर अलविदा न कहना |

    बेहतरीन ,,,,!!!

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  4. बहुत सुन्दर भाव और बहुत सशक्त अभिव्यक्ति ! कविता पढ़ कर आनंद आ गया !

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  5. यदि कभी न देखो मुड़ कर पीछे ,
    पर अलविदा न कहना |

    ,,,,,,,,bahut sundar

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