तुम्हारी याद में हर शाम गुजारी मैंने
सारी दुनिया से दूर रहा
रुसवाई का सबब बना
तुम न आये मायूस किया
अपने को मुझ से दूर किया |
न आने के बहाने अनेक
नया बहाना रोज एक
पर समझाना पड़ता मन को
शायद तुम आ जाओ
शायद तुम आ जाओ
इंतजार रहता मुझ को |
गिटार पर कई धुनें बजाईं मैंने
अपलक जाग रातें गुज़ारीं मैंनें
तेरी याद में धुनें आह में न बदल जायें
कहीं मेरी आखें नम न कर जायें |
हाल मेरा सब देख रहे
मुझ पर हँस कर यह सोच रहे
है यह कैसा परवाना
लगता है किसी शमा का दीवाना
मर मिटने का मन बना बैठा
अपनी सुध बुध खो बैठा |
देर कितनी भी हो चाहे
शाम, रात फिर सुबह हो जाये
अनवरत गिटार बजाता रहूँगा
और तुम्हारा इंतजार करूँगा
ये धुनें तुम्हें खींच लायेंगी
मन के तार झंकृत कर जायेंगी |
आशा
,
हाल मेरा सब देख रहे
मुझ पर हँस कर यह सोच रहे
है यह कैसा परवाना
लगता है किसी शमा का दीवाना
मर मिटने का मन बना बैठा
अपनी सुध बुध खो बैठा |
देर कितनी भी हो चाहे
शाम, रात फिर सुबह हो जाये
अनवरत गिटार बजाता रहूँगा
और तुम्हारा इंतजार करूँगा
ये धुनें तुम्हें खींच लायेंगी
मन के तार झंकृत कर जायेंगी |
आशा
,
अति भावपूर्ण!! बहुत सुन्दर!!
जवाब देंहटाएंसंगीत में इतनी ताकत होती है कि वह पशु पक्षियों तक को अपने वश में कर लेता है तो फिर प्रियतमा कैसे ना खिंची चली आयेगी ! बहुत भावपूर्ण और मधुर रचना ! बधाई एवं शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर!!
जवाब देंहटाएंअद्भुत अभिव्यक्ति...
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