27 जून, 2010

काले कजरारे भूरे बादल

काले कजरारे भूरे बादल,
सारे आसमान में छाये ,
आशा कि किरणें जागी मन में ,
अब तो शायद बरसेंगे ,
पहले सा निराश नहीं करेंगे ,
सारे दिन का इन्तजार ,
निराशा में बदल गया ,
जल की एक बूँद ना बरसी ,
और उमस बढ़ती गई ,
हवा के झोंको को भी ,
बादल सहन न कर पाये ,
जाने कहाँ गुम हो गये ,
हवा को भी संग ले गए ,
दिन में शाम नजर आई ,
चारों ओर अंधियारी छाई,
पर पानी तो बरसा ही नहीं ,
गर्मी और चौगुनी हो गई ,
अब आसमान बिल्कुल साफ है ,
बेचारा किसान बहुत उदास है ,
जाने कब वर्षा आयेगी ,
धरती की प्यास बुझा पायेगी ,
हाथों में बीज लिए वह सोच रहा ,
पिछला साल कहीं फिर तो ना लौटेगा ,
एक-एक बूँद पानी के लिये ,
जब त्राहि-त्राहि मचती थी ,
बिना पर्याप्त जल के ,
बहुत कठिनाई होती थी ,
सूखे की चपेट में आ कर ,
यदि धरती बंजर हो जायेगी ,
सारी खुशियाँ तिरोहित होंगी ,
रोज़ी रोटी भी जायेगी |


आशा

3 टिप्‍पणियां:

  1. बस अब छाने ही वाले हैं बादल...अच्छी प्रस्तुति

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  2. बादलो को तो आना ही होगा
    सुन्दर रचना

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  3. वर्षा का इंतज़ार तो हर इंसान करता है चाहे किसान हो या कोई और ! इस साल बादाल बरस जाएँ तो ही अच्छा है ! एक अच्छी रचना !

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