जब भी कोरा कागज़ देखा ,
पत्र तुम्हें लिखना चाहा ,
लिखने के लिए स्याही न चुनी ,
आँसुओं में घुले काजल को चुना ,
जब वे भी जान न डाल पाये ,
मुझे पसंद नहीं आये ,
अजीब सा जुनून चढ़ा ,
अपने खून से पत्र लिखा ,
यह केवल पत्र नहीं है ,
मेरा दिल है ,
जब तक जवाब नहीं आयेगा ,
उसको चैन नहीं आयेगा ,
चाहे जितने भी व्यस्त रहो ,
कुछ तो समय निकाल लेना ,
उत्तर ज़रूर उसका देना ,
निराश मुझे नहीं करना ,
जितनी बार उसे पढूँगी ,
तुम्हें निकट महसूस करूँगी ,
फिर एक नये उत्साह से ,
और अधिक विश्वास से ,
तुम्हें कई पत्र लिखूँगी ,
जब भी उनको पढूँगी ,
मैं तुम में खोती जाऊँगी ,
आत्म विभोर हो जाऊँगी |
आशा
बहुत ही मार्मिक रचना लिखी है आपने!
जवाब देंहटाएंविरह ,पीड़ा और जुनून सब कुछ ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी रचना है ! शीर्षक ठीक कर लें !
जवाब देंहटाएंकिन लफ़्ज़ों मे तारीफ़ करूँ…………बेहद दर्द भरी रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी रचना है
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरती से अभिव्यक्त किया है ....मर्मस्पर्शी रचना
जवाब देंहटाएंआह
जवाब देंहटाएंकिस सलीसे मर्म को छू गई रचना वाह
dard bhari achchhi rachna.........:)
जवाब देंहटाएंkabhi samay mile to hamare blog pe aayen..