30 जून, 2010

रूढ़िवादिता

ना ही धोखा दिया ,
ना ही हम बेवफा हैं ,
हैं कुछ मजबूरियाँ ऐसी,
कि हम तुम से जुदा हैं |
समाज ने हम को ,
किसी तरह जीने न दिया ,
साथ रहने की चाहत को ,
समूल नष्ट किया ,
पर अब जो भी हो ,
समाज में परिवर्तन लाना होगा ,
रुढीवादी विचारधारा को ,
आईना दिखाना होगा ,
उसे जड़मूल से मिटाना होगा ,
आने वाली पीढ़ी भी वर्ना,
कुछ ना कर पायेगी,
इसी तरह यदि फँसी रही ,
कैसे आगे बढ़ पायेगी ,
हम तो बुज़दिल निकले ,
समाज से मोर्चा ले न सके ,
कुछ कारण ऐसे बने कि ,
अपनी बात पर टिक न सके ,
अब बेरंग ज़िंदगी जीते हैं ,
हर पल समाज को कोसते हैं ,
अपनी अगली पीढ़ी को ,
दूर ऐसे समाज से रखेंगे ,
समस्या तब कोई न होगी ,
स्वतंत्र विचारधारा होगी |


आशा

8 टिप्‍पणियां:

  1. अगली पीढ़ी को समाज की रूढीवादी जकड़न से कैसे दूर रख पायेंगी जब खुद को नहीं रख पाईं ! मार्गदर्शन तो आपको ही करना होगा ! आत्मावलोकन का सुन्दर प्रयास है आपकी रचना ! बधाई !

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  3. दूर ऐसे समाज से रखेंगे ,
    समस्या तब कोई न होगी ,
    स्वतंत्र विचारधारा होगी |

    फ़िर तो अगली पीढी तन्हा तन्हा होगी,
    यूं रूठ गये समाज से तो,
    बिन समाज़ की कैसी जीवनधारा होगी।

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  4. जो बीत गयी सो बात गयी -
    जो आज है वहीशाश्वत है -
    जितनी ही गहरी जड़ें हों -
    वृक्ष उतना ही मज़बूत होता है -
    --------पर आपने वेदना बहुत सुन्दरता से लिखी है
    -------बधाई

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  5. हर पीढ़ी पहली पीढ़ी से जुडी होती है और हर पीढ़ी पिछली पीढ़ी को रूढ़िवादी कहती है....

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  6. Ye Rudhiwadita......jayega ek din jarur........par kab??? ye pata nahi:(

    ek achchhi rachna...!!

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