29 जून, 2010

परम सत्य

जन्म जीवन की सुबह है ,
तो मृत्यु शाम है,
शाम जब ढल जाती है ,
अंधकार हो जाता है ,
दिन का प्रकाश,
जाने कहाँ खो जाता है ,
जीवन साथ छोड़ जाता है ,
सब कुछ यहीं रह जाता है ,
मृत्यु शैया पर पड़ा हुआ वह ,
विचारों में खो जाता है ,
कई बातें याद आती हैं ,
कभी पश्चाताप भी होता है ,
मन में भय भी उभरता है ,
लोभी का लोभ यदि ना छूटे ,
वह विचलित भी होता है ,
सत्कर्म हो या दुष्कर्म ,
सभी यहीं छूट जाते हैं ,
जाने वाले अपने निशान छोड़ जाते हैं ,
दुष्कर्मों की गहरी खाई ,
समय के साथ पट जाती है ,
यादें सत्कर्मों की ,
लम्बे समय तक रहती हैं ,
जन्म और मृत्यु शाश्वत सत्य हैं .
है जन्म जीवन का प्रारम्भ ,
तो मृत्यु अंतिम छोर है ,
सब जानते हुए भी ,
लालसा जीने की रहती है ,
यदि सचेत न हुए ,
आत्मा को शांति नहीं मिलती ,
सच है परम सत्य यही है ,
मृत्यु ही परम शांति है ,
जीवन की विश्रान्ति है |


आशा

9 टिप्‍पणियां:

  1. आप चाहें तो आध्यात्मिक लेख अथवा विचार प्रेषित कर सकती हैं जिन्हें आचार्य जी ब्लाग पर प्रकाशित किया जायेगा, आप के विचार अधिक से अधिक व्यक्ति पढें व चिंतन करें यही हमारा उद्देश्य है, धन्यवाद।
    जय गुरुदेव

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  2. मृत्यू केवल विश्रांति है थोडे समय की फिर तो जन्म लेना ही है । सुंदर रचना ।

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  3. जीवन मृत्यु के दर्शन को रेखांकित करती एक बहुत ही सार्थक रचना ! गंभीर और सशक्त अभिव्यक्ति के लिए साधुवाद ! इसी प्रकार हम सबका मार्गदर्शन करती रहें !

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  4. सुन्दर रचना....जीवन मृत्यु को रेखांकित करती हुई

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  5. बढ़िया है!

    थोडा सा इंतज़ार कीजिये, घूँघट बस उठने ही वाला है - हमारीवाणी.कॉम



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  6. जीवन का सार बताती बहुत सुंदर रचना.

    आभार

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