19 जुलाई, 2010

यह मैं नहीं जानती

मैं नहीं जानती
क्यूं तुम्हें समझ नहीं पाती
तुम क्या हो क्या सोचते हो
क्या प्रतिक्रया देते हो
तुम्हारे विचारों की अभिव्यक्ति
उसमे होते परिवर्तन
सोचने को बाद्ध्य करते हैं
मन में चंचलता भरते हैं
फिर भी तुम्हें समझ नहीं पाती
बरसों साथ रहे फिर भी
मन में झाँक नहीं पाती
सदा प्रसन्न देख नहीं पाती
कभी नरम मक्खन जैसे
कभी मौम से पिघलते
फिर  अचानक पत्थर की तरह
बहुत सख्त हो जाते
कितनी नफरत भरी हुई है
उन् लोगों के लिए
जो कभी बूले से भी
तुम्हारे आड़े आए
जाने अनजाने ही सही
कभी कोई भूल हुई
क्षमा उसे न कर पाए
उसे अपना नहीं पाए
मन में छिपी चिंगारी को
तुम्हारे अपनों ने ही हवा दी
जब आग जलने लगी
सबने हाथ खूब सके
आग कब नफरत में बदली
यह भी तुम्हें पता नहीं
असली क्या और नकली क्या
इसकी भी परख नहीं
कुंठाओं ने  मन में घर किया
कभी उन्हें विसरा न सके
असंतुष्ट सदा रहे
सत्य जान नहीं पाए
कभी यह तो सोचा होता
क्या सभी बुरे होते हैं ?
अच्छा कोई नहीं होता
कुछ न कुछ कमी
तो सब में होती है
कोई यदि खराब भी है
उसमें कुछ तो अच्छाई होगी
क्यूँ बुराई याद करते हो
अपने को व्यथित करते हो
अनुभव सभी कटु नहीं होते
उनमें भी झरोखे होते हैं
यह मैं नहीं जानती
क्यूँ तुम्हें समझ नहीं पाती
तुम क्या हो, क्या सोचते हो
क्या प्रतिक्रिया करते हो
तुम्हारे विचारों की अभिब्यक्ति
उनमे होते परिवर्तन ,
सोचने को बाध्य करते है ,
मन में चंचलता भरते हैं ,
फिर भी तुम्हें समझ नहीं पाती
बरसों साथ रहे फिर भी
मन में झांक नहीं पाती
सदा प्रसन्न देख नहीं पाती
कभी नरम मक्खन जैसे
कभी मौम से पिघल जाते
फिर अचानक पत्थर की तरह
बहुत सख्त हो जाते
कितनी नफरत भरी हुई है
उन लोगों के लिए
जो कभी भूले से भी
तुम्हारे आड़े आए
जाने अनजाने ही 
यदि कोई भूल हुई
क्षमा उसे कर नहीं पाए
उसे अपना नहीं पाए
मन में छिपी चिन्गारी को
तूम्हारे अपनों ने ही हवा दी
जब आग जलने लगी
सब ने हाथ खूब सके
आग कब नफरत में बदली
यह भी तुम्हें पता नहीं
असली क्या है ,नकली क्या है
इसकी भी परख नहीं
कुंठाओं ने घर किया मन में
कभी उन्हें बिसरा न सके
असंतुष्ट सदा रहे
सत्य पहचान नहीं पाए
जिनसे मीठी यादों की
पुरवाई भी आती है
उसे यदि महसूस करो
तब मन हल्का हो सकता है
तुम उदास कभी न होगे
असन्तुष्ट भी नहीं रहोगे
जब बदलाव सोच में होगा
अच्छाई नजर आएगी
मन में उदासी नहीं रहेगी
जीवन में विरोधाभास न होगा |
आशा



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6 टिप्‍पणियां:

  1. सोचने को मजबूर करती है आपकी यह रचना !

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  2. बहुत ही सुन्दर और सार्थक रचना ! साथ ही आत्मचिंतन के लिये प्रेरित करने में भी बहुत सक्षम ! बधाई एवं शुभकामनायें !

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  3. भूतकाल में जीने वालों के लिए जीवन उतना आनंद दायक नहीं होता जितना मस्त रहने वालों के लिए !
    बेहतर है जो अच्छा लगे उसे अपनालो जो बुरा लगे उसे जाने दो ! जीवंत रचना के लिए बधाई आपको !
    आपका परिचय और सादगी पसंद आई! आपको शुभकामनायें !

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