जब छाई काली घटा
रिमझिम रिमझिम जल बरसा
प्यासी धरती तृप्त हुई
जन मानस भी सरसा
चारों ओर हरियाली छाई
दुर्वा झूमी और मुस्काई
मुरझाए पौधे लहराने लगे
झूलों पर पैंग बढाने लगे
रंग बिरंगी तितलियाँ
पौधों पर मंडराने लगीं
फूलों से प्रेम जताने लगीं
छोटी छोटी जल की बूंदें
धीरे धीरे बढनें लगीं
धरती की गोदी भरने लगीं
मोर और पपीहे के स्वर
वन उपवन में गूँज रहे
हर्ष से भरे हुए वे
वर्षा का स्वागत कर रहे
सौंधी खुशबू मिट्टी की
मन प्रफुल्लित हो रहा
बहुत आशा से किसान
यह कंचन वर्षा देख रहा
अच्छी फसल की आशा में
अनेकों सपने सजा रहा
नदी तलाब और झरने
वर्षा का जल सहेज रहे
कल कल करती नदियाँ झरने
और आस पास की हरियाली
है रंगीन समा ऐसा
जी करता है जल में भीगूँ
प्रकृति की गोद में
हल्के ठंडे मौसम में
आँखें अपनी बंद कर लूं
अनुपम दृश्यों को
अपने मन में भर लूँ|
आशा
जी करता है जल में भीगूँ ,
जवाब देंहटाएंप्रकृति की गोद में ,
हल्के ठंडे मौसम में ,,
वर्षा ऋतु को साक्षात जिया है आपने इस रचना में .... बहुत अनुपम रचना ...
हल्के ठंडे मौसम में ,,
जवाब देंहटाएंआँखें अपनी बंद करलूं ,
अनुपम दृश्यों को ,
अपने मन में भर लूँ ,
मौसम का सुरम्य वर्णन ...
प्रकृति मानो सजीव हो उठी ..
Varsh ka manohari sajeev chitran ke liye aabhar
जवाब देंहटाएंHaardik shubhkamnayne
वर्षा का मनोरम दृश्य प्रस्तुत कर दिया ....सुन्दर
जवाब देंहटाएंआपकी रचना ने मन को भिगो दिया और मैं भी उन दिनों को जीने लगी जब रिमझिम बारिश की फुहारों को चहरे पर झेलने की जिद हुआ करती थी ! सुन्दर रचना !
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