27 जुलाई, 2010

बाढ़

भीषण गर्मी से त्रस्त थे ,
आसार वर्षा के नजर ना आते थे ,
तब पूजा पाठों का दौर चला ,
हवन और अनुष्ठान हुए ,
भविष्य बाणी पंडितों की ,
और सूचनाएं मौसम विभाग की,
सभी लगभग गलत निकलीं ,
पानी की एक बूंद न बरसी ,
जैसे जैसे दिन निकले ,
सूखे के आसार दिखने लगे ,
पर एक दिन अचानक ,
काली घनघोर घटा छाई ,
बादल गरजे ,बिजली चमकी ,
बहुत तेज बारिश आई ,
झड़ी बरसात की ऐसी लगी ,
थमने का नाम न लेती थी ,
मैने जब खिड़की से बाहर झंका ,
कुछ लोगों को टीले पर देखा ,
उत्सुकता जागी मन में ,
छाता थामा ,टीले पहुंचे ,
सब बाढ़ नदी की देख रहे थे .
छोटा पुल पूरा डूब चुका था .
पानी बड़े पुल के भी ऊपर था .
जल स्तर बढ़ता जाता था ,
खतरे का निशान भी,
नजर नहीं आता था ,
नदी पूरे उफान पर थी ,
सारी सीमाएं तोडी पानी ने ,
जब खेतों में प्रवेश किया ,
फिर एक जलजला आया ,
जब निचली बस्ती जल मग्न हुई ,
कोई पेड़ पर बैठा था ,
मचान किसी का आश्रय थी ,
कुछ लोग बच्चों को ले कर ,
सड़क पार करते दिखते थे ,
त्राहि त्राहि मची हुई थी ,
हर ओर भय की चादर पसरी थी ,
जाने कितनी हानि हुई थी ,
कई स्वयंसेवी जुटे हुए थे ,
डूबतों को बचाने में ,
निर्बलों को बाहर लाने में ,
छोटी नौकाओं के सहारे ,
महिलाओं बच्चों को ,निकालने में ,
सुरक्षित स्थानों तक पहुँचाने में ,
शासन ने शाला खुल्बाई ,
निराश्रितों को राहत पहुंचाई ,
पर वह इतनी ना काफी थी ,
ऊंट के मुंह में जीरे सी थी ,
ऐसी कठिन विपरीत स्थिती,
मैने पहले ना देखी थी ,
प्रकृति से छेड़छाड़ का ,
यह तो एक नतीजा है ,
जिसे रोक ना पाए तो ,
ना जाने क्या क्या होगा |
आशा

7 टिप्‍पणियां:

  1. पानी रे पानी तेरा रंग कैसा .... सच में प्राकृति से छेड़छाड़ कहा ले जाएगी हमें ...

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  2. प्रकृति से छेड़ sda bhayavah rahi hai ......

    kuchh lambi jarur hai ....par sandesh deti rachna .......!!

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  3. अति हर बात की बुरी होती है ! इससे पहले वाली रचना में पहली बारिश का आनंद ठीक से उठा भी न पाये थे कि बाढ़ का कहर टूट पड़ा ! ठीक ही कहा आपने प्रकृति से छेड़छाड़ का यही दुष्परिणाम निकलेगा ! सार्थक सन्देश देती एक सारगर्भित रचना ! बधाई !

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  4. बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।

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  5. यह कविता इस बात का सबूत है कि कवयित्री की निगहबान आंखों से न तो जीवन के उत्सव और उल्लास ओझल हैं और न ही जीवन के खुरदुरे यथार्थ।

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  6. अब तो बारिश भी हो गई....
    ________________________
    'पाखी की दुनिया ' में बारिश और रेनकोट...Rain-Rain go away..

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  7. मनुष्य प्रकृति की सहनशक्ति की परीक्षा ले रहा है। वैसे तो प्रकृति में यह सब सदा से होता आया है परन्तु अब अधिक मात्रा में हो रहा है।
    कविता अच्छी चेतावनी दे रही है।
    घुघूती बासूती

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