अपना ब्याह रचाना है ,
यह भली भांति जानती हूं ,
पर मैं कोई गाय नहीं कि ,
किसी भी खूंटे से बांधी जाऊं
ना ही कोई पक्षी हूं ,
जिसे पिंजरे में रखा जाए ,
मैं गूंगी गुड़िया भी नहीं ,
कि चाहे जिसे दे दिया जाए ,
मैं ऐसा सामान नहीं ,
कि बार बार प्रदर्शन हो ,
जिसे घरवालों ने देखा ,
वह मुझे पसंद नहीं आया ,
मैं क्या हूं क्या चाहती हूं ,
यह भी न कोई सोच पाया ,
ना ही कोई ब्यक्तित्व है ,
और ना ही बौद्धिकस्तर ,
ना ही भविष्य सुरक्षित उसका
फिर भी घमंड पुरुष होने का ,
अपना वर्चस्व चाहता है ,
जो उसके कहने में चले,
ऐसी पत्नी चाहता है ,
पर मैं यह सब नहीं चाहती ,
स्वायत्वता है अधिकार मेरा ,
जिसे खोना नहीं चाहती ,
जागृत होते हुए समाज में ,
कुछ योगदान करना चाहती हूं ,
उसमे परिवर्तन चाहती हूं ,
वरमाला मैं तभी डालूंगी ,
यदि उसे अपने योग्य पाऊँगी |
MAM CAN I REPOST THIS ON NAARI KAVITA BLOG
जवाब देंहटाएंजागृत होते हुए समाज में ,
जवाब देंहटाएंकुछ योगदान करना चाहती हूं ,
उसमे परिवर्तन लाना चाहती हूं ,
वरमाला मैं तभी डालूंगी ,
यदि किसी को अपने योग्य पाऊँगी
Soye hue janmanas ka jan jaagran karti aapki kavita jindagi mein kuch kar dikhane ke liye prerana deti hai..
...Saarthak prastuti ke liye aabhar
नारी मन के विद्रोह और आक्रोश को उजागर करती एक सार्थक और प्रेरक रचना ! बधाई !
जवाब देंहटाएंरचना जी ,
जवाब देंहटाएंमुझे अच्छा लगेगा यदि आप नारी ब्लॉग में मेरी रचना को स्थान
देती हैं | सधन्यवाद
आशा
जागरूकता देने वाली रचना ....सार्थक सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
दुआ करुँगी की यह आत्मविश्वास बना रहे ...
जवाब देंहटाएंहर लड़की यही चाहती रही है बरसों से ...
हर लड़की का यह सपना पूरा हो ...
बहुत सुन्दर ..!
http://indianwomanhasarrived2.blogspot.com/2010/07/blog-post_30.html
जवाब देंहटाएंkavita yahaa bhi haen