29 जुलाई, 2010

मैं क्या चाहती हूं ?

 अपना ब्याह रचाना है ,
यह भली भांति जानती हूं ,
पर मैं कोई गाय नहीं कि ,
किसी भी खूंटे से बांधी जाऊं
ना ही कोई पक्षी हूं ,
जिसे पिंजरे में रखा जाए ,
मैं गूंगी गुड़िया भी नहीं ,
कि चाहे जिसे दे दिया जाए ,
मैं ऐसा सामान नहीं ,
कि बार बार प्रदर्शन हो ,
जिसे घरवालों ने देखा ,
वह मुझे पसंद नहीं आया ,
मैं क्या हूं क्या चाहती हूं ,
यह भी न कोई सोच पाया ,
ना ही कोई ब्यक्तित्व है ,
और ना ही बौद्धिकस्तर ,
ना ही भविष्य सुरक्षित उसका
फिर भी घमंड पुरुष होने का ,
अपना वर्चस्व चाहता है ,
जो उसके कहने में चले,
ऐसी पत्नी चाहता है ,
पर मैं यह सब नहीं चाहती ,
स्वायत्वता है अधिकार मेरा ,
जिसे खोना नहीं चाहती ,
जागृत होते हुए समाज में ,
कुछ योगदान करना चाहती हूं ,
उसमे परिवर्तन चाहती हूं ,
वरमाला मैं तभी डालूंगी ,
यदि उसे अपने योग्य पाऊँगी |

8 टिप्‍पणियां:

  1. MAM CAN I REPOST THIS ON NAARI KAVITA BLOG

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  2. जागृत होते हुए समाज में ,
    कुछ योगदान करना चाहती हूं ,
    उसमे परिवर्तन लाना चाहती हूं ,
    वरमाला मैं तभी डालूंगी ,
    यदि किसी को अपने योग्य पाऊँगी

    Soye hue janmanas ka jan jaagran karti aapki kavita jindagi mein kuch kar dikhane ke liye prerana deti hai..
    ...Saarthak prastuti ke liye aabhar

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  3. नारी मन के विद्रोह और आक्रोश को उजागर करती एक सार्थक और प्रेरक रचना ! बधाई !

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  4. रचना जी ,
    मुझे अच्छा लगेगा यदि आप नारी ब्लॉग में मेरी रचना को स्थान
    देती हैं | सधन्यवाद
    आशा

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  5. जागरूकता देने वाली रचना ....सार्थक सृजन

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  6. बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।

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  7. दुआ करुँगी की यह आत्मविश्वास बना रहे ...
    हर लड़की यही चाहती रही है बरसों से ...
    हर लड़की का यह सपना पूरा हो ...
    बहुत सुन्दर ..!

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  8. http://indianwomanhasarrived2.blogspot.com/2010/07/blog-post_30.html
    kavita yahaa bhi haen

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