06 अगस्त, 2010

जाने कितनी यादों को

जाने कितनी यादों को,
अपने दिल के आंगन में ,
सजा रखा है ,
जब तुम छोटी सी परी थीं ,
प्रथम कदम उठाया था ,
आगे बढ़ना चाहा था ,
अपने नन्हें हाथों से तुमने ,
मेरी उंगली थामी थी ,
हल्का सा भय लिए हंसी थी ,
तुम्हारे भोले आनन पर ,
वह आज भी मैं भूली नहीं हूं ,
सतरंगा फ्राक पहनकर ,
जब तुमने कहा था नाच दिखाऊं ,
गोल गोल घूम घूम कर ,
एक उंगली ऊपर करके ,
अनोखे अंदाज में,
नाच दिखाया था ,
आज भी जब सोचती हूं ,
तुम्हारी वह भोली सूरत ,
पर नयनों में छिपी शरारत ,
मेरी आँखों में घूम जाती है ,
दिल के आँगन में ,
तुम और तुम्हारी छाया ,
दूर दूर तक फैल जाती है ,
वह प्यारा सा भोला बचपन ,
अब जाने कहाँ छूट गया है ,
बहुत बड़ी हो गई हो ,
जटिल समस्याओं में उलझी हो ,
फिर भी जब तुम्हें देखती हूं ,
आज भी तुममें ,
छोटी सी गुड़िया नजर आती है ,
जो नाचती है गाती है ,
बड़ी बड़ी आँखों से अपनी ,
प्यार ढेर सा छलका जाती है ,
मीठी अटपटी भाषा में,
जाने क्या कहना चाहती है ,
मैं उसे महसूस करती हूं ,
दिल की बगिया में सजा लेती हूं |
आशा

6 टिप्‍पणियां:

  1. माँ के मन में बेटियां कभी बड़ी नहीं होतीं ....सुन्दर रचना

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  2. ममता से ओत प्रोत बहुत ही प्यारी रचना ! इस मधुर रचना में हर माँ को अपनी भावनाओं का प्रतिबिम्ब अवश्य दिखाई देगा ! सुन्दर प्रस्तुति के लिये बधाई !

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  3. ममतामयी सुंदर अभिव्यक्ति
    बधाई

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  4. आशा माँ,
    नमस्ते!
    ......संजय भास्कर
    बहुत अच्छी प्रस्तुति।

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  5. apki rachnayein padhi,behad pasand aayi....
    main apne blog par apko amantrit karta hoon,aur apka ashirwaad chahata hoon
    dhanyawaad.....

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