पन्द्रह अगस्त स्वतन्त्रता दिवस के अवसर पर विशेष रूप से लिखी गई रचना |शायद पसंद आए |
इस तिरंगे की छाँव में ,जाने कितने वर्ष बीत गए
फिर भी रहता है इन्तजार
हर वर्ष पन्द्रह अगस्त के आने का
स्वतंत्रता दिवस मनाने का |
इस तिरंगे के नीचे
हर वर्ष नया प्रण लेते हैं
है मात्र यह औपचारिकता
जिसे निभाना होता है |
जैसे ही दिन बीत जाता
रात होती फिर आता दूसरा दिन
बीते कल की तरह
प्रण भी भुला दिया जाता |
अब भी हम जैसे थे
वैसे ही हैं ,वहीँ खड़े हैं
कुछ भी परिवर्तन नहीं हुआ
पंक में और अधिक धंसे हैं |
कभी मन मैं दुःख होता है
वह उद्विग्न भी होता है
फिर सोच कर रह जाते हैं
अकेला चना भाड़ नहीं फोड सकता
जीवन के प्रवाह को रोक नहीं सकता |
शायद अगले पन्द्रह अगस्त तक
कोई चमत्कार हो जाए
हम में कुछ परिवर्तन आए
अधिक नहीं पर यह तो हो
प्रण किया ही ऐसा जाए
जिसे निभाना मुश्किल ना हो |
फिर यदि इस प्रण पर अटल रहे
उसे पूरा करने में सफल रहे
तब यह दुःख तो ना होगा
जो प्रण हमने किया था
उसे निभा नहीं पाए
देश के प्रतिकुछ तो निष्ठा रख पाए
अपना प्रण पूरा कर पाए |
आशा
फिर भी रहता है इन्तजार
हर वर्ष पन्द्रह अगस्त के आने का
स्वतंत्रता दिवस मनाने का |
इस तिरंगे के नीचे
हर वर्ष नया प्रण लेते हैं
है मात्र यह औपचारिकता
जिसे निभाना होता है |
जैसे ही दिन बीत जाता
रात होती फिर आता दूसरा दिन
बीते कल की तरह
प्रण भी भुला दिया जाता |
अब भी हम जैसे थे
वैसे ही हैं ,वहीँ खड़े हैं
कुछ भी परिवर्तन नहीं हुआ
पंक में और अधिक धंसे हैं |
कभी मन मैं दुःख होता है
वह उद्विग्न भी होता है
फिर सोच कर रह जाते हैं
अकेला चना भाड़ नहीं फोड सकता
जीवन के प्रवाह को रोक नहीं सकता |
शायद अगले पन्द्रह अगस्त तक
कोई चमत्कार हो जाए
हम में कुछ परिवर्तन आए
अधिक नहीं पर यह तो हो
प्रण किया ही ऐसा जाए
जिसे निभाना मुश्किल ना हो |
फिर यदि इस प्रण पर अटल रहे
उसे पूरा करने में सफल रहे
तब यह दुःख तो ना होगा
जो प्रण हमने किया था
उसे निभा नहीं पाए
देश के प्रतिकुछ तो निष्ठा रख पाए
अपना प्रण पूरा कर पाए |
आशा
इस तिरंगे के नीचे ,
जवाब देंहटाएंहर वर्ष नया प्रण लेते हैं ,
है मात्र यह औपचारिकता ,
जिसे निभाना होता है ,
जैसे ही दिन बीत जाता है ,
रात होती है ,
दूसरा दिन आता है ,
बीते कल की तरह ,
प्रण भी भुला दिया जाता है ,
..Aajkal kuch aisa ho chla hai.. jo ki behad dukhdaaye hai.. kash yah baat hamare rajneta aur prashsan mein baithe log samjh paate.. ishwar unhen yah sadbudhi deta..
Bahut chintansheel rachna.. badhai
आज की रचना एक सोच को उभारती हुई ....सच है हर साल स्वतंत्रता दिवस मानते हैं ..सब कुछ यंत्रचालित स रहता है ...पर सच ही क्या कोई प्राण निष्ठापूर्वक किया है ? सोचने को विवश करती अच्छी अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबीते कल की तरह ,
जवाब देंहटाएंप्रण भी भुला दिया जाता है ,
अब भी हम जैसे थे ,
वैसे ही हैं ,वहीँ खड़े हैं ,
कुछ भी परिवर्तन नहीं हुआ है ,
पंक में और अधिक धंसे हैं ,
कभी मन मैं दुःख होता है ,
वह उद्विग्न भी होता है ,
फिर सोच कर रह जाते हैं ,
अकेला चना भाड़ नहीं फोड सकता ,
जीवन के प्रवाह को रोक नहीं सकता
sochne ko majboor karti hui ek tathy parak rachna. Vicharniy vindu. Samvedana ka aagrah, kuchh lalkaar kuchh fatkaar. Nice. Atisunder.
नहीं होता कोई विकल्प
जवाब देंहटाएंकिसी संकल्प का.
संकल्प्प में ही सन्निहित है,
असीम ऊर्जा गतिशील होने
गतिमान करने के लिए.
रुक जाना तो मानव की हार है,
इस हार को धारण करना
पहन लेना कायरता है
शायद अगले पन्द्रह अगस्त तक ,
जवाब देंहटाएंकोई चमत्कार हो जाए ,
हम में कुछ परिवर्तन आए ,
अधिक नहीं पर यह तो हो ,
प्रण किया ही ऐसा जाए ,
जिसे निभाना मुश्किल ना हो ,
फिर यदि इस प्रण पर अटल रहे ,
उसे पूरा करने में सफल रहे ,
तब यह दुःख तो ना होगा ,
जो प्रण हमने किया था ,
उसे निभा नहीं पाए ,
देश के प्रति,
कुछ तो निष्ठा रख पाए ,
अपना प्रण पूरा कर पाए |
सटीक और सत्य कहा………………मशीनीकरण से खुद को उबारना होगा और सच मे कुछ करना होगा जो खुद से तो निगाह मिला पायें।
हर हाथ को काम और रोटी कपड़ा मकान का जो सपना हमारे बलिदानी पूर्वजों ने देखा था,वह आज भी दूर की कौड़ी है। लोग भूख से आज भी मर रहे हैं,किसान आत्म हत्या कर रहे हैं, परम्परागत रुप से काम करने वालों का रोजगार खत्म कर दिया गय। चारों तरफ़ फ़ैला हुआ भ्रष्टाचार बेरोजगारी को बढा रहा है।
जवाब देंहटाएंक्या हो रहा है यह हमारे देश में?
जय हिन्द!
जवाब देंहटाएंवन्दे मातरम्!!
--
बहुत सशक्त रचना है!
शायद अगले पन्द्रह अगस्त तक ,
जवाब देंहटाएंकोई चमत्कार हो जाए ,
हम में कुछ परिवर्तन आए ,
अधिक नहीं पर यह तो हो ,
प्रण किया ही ऐसा जाए ,
जिसे निभाना मुश्किल ना हो ,
फिर यदि इस प्रण पर अटल रहे ,
उसे पूरा करने में सफल रहे ,
तब यह दुःख तो ना होगा ,
जो प्रण हमने किया था ,
उसे निभा नहीं पाए ,
देश के प्रति,
कुछ तो निष्ठा रख पाए ,
अपना प्रण पूरा कर पाए |
-बहुत उम्दा और स्पष्ट कहन!!
बहुत सुन्दर और संवेदनशील रचना ! लेकिन दुःख होता है कि ऐसी अभिलाषायें अक्सर अरण्यरोदन ही सिद्ध हो जाती हैं ! क्योंकि तिरंगे के नीचे प्रण लेने वाले राजनेता और प्रशासनिक अधिकारी, जो देश के कर्णधार और सूत्रधार बने बैठे हैं, वे वास्तव में एक औपचारिकता ही निभा रहे होते हैं जिसका उनकी अपनी नज़र में कोई मोल नहीं होता ! सार्थक रचना के लिये बधाई !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
आपकी यह रचना दिल के गहराई तक छू गई.... बहुत भावपूर्ण रचना है...
जवाब देंहटाएंjai hind...
जय हिन्द!
जवाब देंहटाएंवन्दे मातरम्!
sacchi baat kahi hai aapne...
जवाब देंहटाएंbahut sundar prastuti..
achhi kavita..deshbhakti ka jajba liye...jai hind
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना .......
जवाब देंहटाएंदिल को छू गई !!!
शब्द बोल ही नहीं रहे दिखा भी रहे हैं। आजादी का सच बयान किया है आपने।
जवाब देंहटाएंआप सब को स्वतंत्रतादिवस के शुभ अवसर पर शुभकामनाएं |
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आने और प्रोत्साहित करने के लिए आभार |
आशा