10 अगस्त, 2010

तुम क्यूँ मेरा पीछा करती हो

सुबह हो या दोपहर हो ,
जब मैं बाहर जाती हूँ ,
कभी आगे चलती हो ,
कभी पीछे ,
पर सदा साथ साथ चलती हो ,
मुझे कारण पता नहीं होता ,
तुम क्यूँ मेरा पीछा करती हो ,
तुम क्या चाहती हो
मौनव्रत लिए रहती हो ,
बार बार मुझे छलती हो ,
हो तुम आखिर कौन ,
जो मेरा पीछा करती हो ,
मेरी जासूसी करती हो ,
मैं झुकती हूं तुम झुकती हो ,
मैं रुकती हूं तुम रुकती हो ,
मेरा साथ तब भी न छोड़तीं ,
जब भी बादल होते हैं ,
या घना अंधकार होता है ,
मुझे डर भी लगता है ,
तभी साथ छोड़ जाती हो ,
तुम ऐसा क्यूँ करती हो ,
हर बार मुझे छलती हो ,
क्या रात में भी साथ रहती हो ,
मेरी सारी बातों को ,
चुपके से जान लेती हो ,
क्या तुम मेरी प्रतिच्छाया हो ,
या हो और कोई ,
तुमको मैं क्या नाम दूँ ,
यह तो बताती जाओ |
आशा

7 टिप्‍पणियां:

  1. एक सुन्दर और प्यारी सी रचना ! परछाईं के ऊपर एक अच्छी रचना रच डाली आपने ! बधाई !

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  2. परछाइयों का रौशनी और अँधेरे से बढ़िया सामंजस्य है.
    आशा जी सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकारें.

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  3. बहुत खूबसूरती से परछाईं की बात कही है ....सुन्दर अभिव्यक्ति

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  4. bahut hi pyari rachna.....

    Meri Nayi Kavita Padne Ke Liye Blog Par Swaagat hai aapka......

    A Silent Silence : Ye Paisa..

    Banned Area News : 10 Things We Don't Know About Pakhi

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  5. हो तुम आखिर कौन ,
    जो मेरा पीछा करती हो ,
    मेरी जासूसी करती हो ,
    मैं झुकती हूं तुम झुकती हो ,
    मैं रुकती हूं तुम रुकती हो ,
    मेरा साथ तब भी न छोड़तीं ,
    जब भी बादल होते हैं ,
    या घना अंधकार होता है ,
    मुझे डर भी लगता है ,
    तभी साथ छोड़ जाती हो ,
    तुम ऐसा क्यूँ करती हो ,

    wah aabhas hai , satya nahin. parchhai bhi maya hai apna hi ek viswaas hai. wishwaas ko bhi kasauti pr khara urarna chahiy. nahin to wah ek aabhaas hai. Chhaliya hai - Chhaya ki tarah.

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  6. परछाईं के हाव भाव और स्वभाव का एक बेहद उम्दा चित्रण किया है।

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