सुबह हो या दोपहर हो ,
जब मैं बाहर जाती हूँ ,
कभी आगे चलती हो ,
कभी पीछे ,
पर सदा साथ साथ चलती हो ,
मुझे कारण पता नहीं होता ,
तुम क्यूँ मेरा पीछा करती हो ,
तुम क्या चाहती हो
मौनव्रत लिए रहती हो ,
बार बार मुझे छलती हो ,
हो तुम आखिर कौन ,
जो मेरा पीछा करती हो ,
मेरी जासूसी करती हो ,
मैं झुकती हूं तुम झुकती हो ,
मैं रुकती हूं तुम रुकती हो ,
मेरा साथ तब भी न छोड़तीं ,
जब भी बादल होते हैं ,
या घना अंधकार होता है ,
मुझे डर भी लगता है ,
तभी साथ छोड़ जाती हो ,
तुम ऐसा क्यूँ करती हो ,
हर बार मुझे छलती हो ,
क्या रात में भी साथ रहती हो ,
मेरी सारी बातों को ,
चुपके से जान लेती हो ,
क्या तुम मेरी प्रतिच्छाया हो ,
या हो और कोई ,
तुमको मैं क्या नाम दूँ ,
यह तो बताती जाओ |
आशा
एक सुन्दर और प्यारी सी रचना ! परछाईं के ऊपर एक अच्छी रचना रच डाली आपने ! बधाई !
जवाब देंहटाएंbehad sundar.
जवाब देंहटाएंपरछाइयों का रौशनी और अँधेरे से बढ़िया सामंजस्य है.
जवाब देंहटाएंआशा जी सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकारें.
बहुत खूबसूरती से परछाईं की बात कही है ....सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंbahut hi pyari rachna.....
जवाब देंहटाएंMeri Nayi Kavita Padne Ke Liye Blog Par Swaagat hai aapka......
A Silent Silence : Ye Paisa..
Banned Area News : 10 Things We Don't Know About Pakhi
हो तुम आखिर कौन ,
जवाब देंहटाएंजो मेरा पीछा करती हो ,
मेरी जासूसी करती हो ,
मैं झुकती हूं तुम झुकती हो ,
मैं रुकती हूं तुम रुकती हो ,
मेरा साथ तब भी न छोड़तीं ,
जब भी बादल होते हैं ,
या घना अंधकार होता है ,
मुझे डर भी लगता है ,
तभी साथ छोड़ जाती हो ,
तुम ऐसा क्यूँ करती हो ,
wah aabhas hai , satya nahin. parchhai bhi maya hai apna hi ek viswaas hai. wishwaas ko bhi kasauti pr khara urarna chahiy. nahin to wah ek aabhaas hai. Chhaliya hai - Chhaya ki tarah.
परछाईं के हाव भाव और स्वभाव का एक बेहद उम्दा चित्रण किया है।
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