14 अगस्त, 2010

तुम मेरे बिना अधूरे हो

जब हम होंगे सागर के ऊपर ,
मैं तरंग बन लहरों के संग,
मीठे गीत गुनागुनाऊंगी ,
बस तुम मेरे साथ रहना ,
मैं कोई व्यवधान नहीं बनूंगी ,
यह चाहती हूं जग देखूं ,
हिलूं मिलूँ और स्नेह बटोरूँ ,
जब वन उपवन से गुजारें ,
कुछ कदम पहले पहुंच कर ,
पंख फैलाए मोरों के संग ,
घूम घूम कर ,
थिरक थिरक कर नाचूंगी ,
तुम्हारे आगमन पर,
स्वागत मैं तुम्हारा करूंगी ,
मैं हवा हूं ,
कोमल पौधों के संग,
खेलूंगी अठखेली करूंगी ,
महानगरीय संस्कृति ,
मुझे अच्छी नहीं लगती ,
मेरे साथ गाँव चलना ,
सुरम्य वादियों से गुजरना ,
रमणीय दृश्य देख वहां के ,
उनमें कहीं ना खो जाना ,
वारिध तुम यह भूल न जाना ,
तुम मेरे बिना अधूरे हो ,
जब तक साथ तुम्हारा दूंगी ,
तुम आगे बढते जाओगे ,
मैं मंद हवा का झोंका हूं ,
अस्तित्व मेरा भुला ना पाओगे ,
मेरा साथ यदि छोड़ा,
तुम कहीं भी खो जाओगे |
आशा

6 टिप्‍पणियां:

  1. मैं हवा हूं ,
    कोमल पौधों के संग,
    खेलूंगी अठखेली करूंगी ,
    महानगरीय संस्कृति ,
    मुझे अच्छी नहीं लगती ,
    सुरम्यता और शीतलता प्रदान करती रचना

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  2. मैं मंद हवा का झोंका हूं ,
    अस्तित्व मेरा भुला ना पाओगे ,
    मेरा साथ यदि छोड़ा,
    तुम कहीं भी खो जाओगे |
    --
    बहुत सुन्दर मखमली बयार सी अभिव्यक्ति!

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  3. मेरे साथ गाँव चलना ,
    सुरम्य वादियों से गुजरना ,
    रमणीय दृश्य देख वहां के ,
    उनमें कहीं ना खो जाना ,

    बहुत सुंदर-लेकिन गांव भी अब पहले वाले गांव नहीं रह गए।

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  4. मैं मंद हवा का झोंका हूं ,
    अस्तित्व मेरा भुला ना पाओगे ,
    मेरा साथ यदि छोड़ा,
    तुम कहीं भी खो जाओगे |

    .....बहुत सुंदर भाव युक्त कविता

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  5. बहुत सुन्दर मखमली बयार सी अभिव्यक्ति

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  6. बहुत प्यारी रचना ! बादलों के साथ मंद हवा के झोंकों का आनंद लेती मैं भी आपके कल्पना संसार में विचरने लगी थी ! प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति ! बधाई !

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