कई बार सड़क पर चौराहों पर ,
झगडों टंटों को पैर पसारे देखा है ,
अन्याय करता तो एक होता है ,
पर दृष्टाओं को उग्र होते देखा है ,
ऐसे उदाहरण अच्छा सन्देश नहीं देते ,
उलटा भय औरअसुरक्षा से ,
भर देते हैं सब को ,
बीते कल का एक दृष्य ,
जब भी सामने आता है ,
बार बार विचार आता है ,
ऐसा क्या किया था उसने ,
जो उस पर कहर टूट रहा था ,
वहां जमा जन समूह ,
उसे समूचा निगलना चाह रहा था ,
सच्चाई जब सामने आई ,
मन मैं झंझावात उठा ,
उस निरीह प्राणी के लिया ,
एक दया का भाव उठा ,
गलती उसकी इतनी सी थी ,
वह चार दिनों से भूखा था ,
जब भूख सहन ना कर पाया ,
अपने को चौराहे पर पाया ,
पहले भीख मांगना चाही ,
पर वह भी जब नहीं मिली ,
चोरी का रास्ता अपनाया ,
जैसे ही दुकान पर पहुंचा ,
रोटी के लिए हाथ बढाया ,
दुकानदार ने देख लिया ,
बहुत मारा बेदम किया ,
जन समूह भी उग्र हुआ ,
और उसे निढाल किया ,
वह टूट गया था ,
फूट फूट कर रोता था ,
वह तो काम चाहता था ,
पर कोई ऐसा नहीं था ,
जो उसे अपना लेता ,
काम के बदले रोटी देता |
आशा
मेरी ओर से स्वतन्त्रता-दिवस की
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाएँ स्वीकार करें!
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वन्दे मातरम्!
मार्मिक चित्रण ..
जवाब देंहटाएंमार्मिक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंराष्ट्रीय व्यवहार में हिन्दी को काम में लाना देश की शीघ्र उन्नति के लिए आवश्यक है।
बहुत मार्मिक वर्णन.
जवाब देंहटाएंमार्मिक ..!
जवाब देंहटाएंbahut hi pyara likha hai aapne..
जवाब देंहटाएंshukriya
Meri Nayi Kavita par aapke Comments ka intzar rahega.....
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यही हमारे समाज का विद्रूप से भरा चेहरा है जो किसी को सहारा देना नहीं चाहता और किसीके प्रति दया और सहिष्णुता का भाव उसमें दिखाई नहीं देता ! यहाँ लोग दान पुण्य भी महिमामंडन की अभिलाषा के साथ करते हैं ! जो वास्तव में ज़रूरतमंद हैं उनकी ओर किसीका ध्यान नहीं जाता ! कटु सत्य को उजागर करती एक प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति !
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