15 अगस्त, 2010

गलती उसकी इतनी सी थी

कई बार सड़क पर चौराहों पर ,
झगडों टंटों को पैर पसारे देखा है ,
अन्याय करता तो एक होता है ,
पर दृष्टाओं को उग्र होते देखा है ,
ऐसे उदाहरण अच्छा सन्देश नहीं देते ,
उलटा भय औरअसुरक्षा से ,
भर देते हैं सब को ,
बीते कल का एक दृष्य ,
जब भी सामने आता है ,
बार बार विचार आता है ,
ऐसा क्या किया था उसने ,
जो उस पर कहर टूट रहा था ,
वहां जमा जन समूह ,
उसे समूचा निगलना चाह रहा था ,
सच्चाई जब सामने आई ,
मन मैं झंझावात उठा ,
उस निरीह प्राणी के लिया ,
एक दया का भाव उठा ,
गलती उसकी इतनी सी थी ,
वह चार दिनों से भूखा था ,
जब भूख सहन ना कर पाया ,
अपने को चौराहे पर पाया ,
पहले भीख मांगना चाही ,
पर वह भी जब नहीं मिली ,
चोरी का रास्ता अपनाया ,
जैसे ही दुकान पर पहुंचा ,
रोटी के लिए हाथ बढाया ,
दुकानदार ने देख लिया ,
बहुत मारा बेदम किया ,
जन समूह भी उग्र हुआ ,
और उसे निढाल किया ,
वह टूट गया था ,
फूट फूट कर रोता था ,
वह तो काम चाहता था ,
पर कोई ऐसा नहीं था ,
जो उसे अपना लेता ,
काम के बदले रोटी देता |
आशा

7 टिप्‍पणियां:

  1. मेरी ओर से स्वतन्त्रता-दिवस की
    हार्दिक शुभकामनाएँ स्वीकार करें!
    --
    वन्दे मातरम्!

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  2. मार्मिक प्रस्तुति।

    राष्ट्रीय व्यवहार में हिन्दी को काम में लाना देश की शीघ्र उन्नति के लिए आवश्यक है।

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  3. bahut hi pyara likha hai aapne..
    shukriya

    Meri Nayi Kavita par aapke Comments ka intzar rahega.....

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  4. यही हमारे समाज का विद्रूप से भरा चेहरा है जो किसी को सहारा देना नहीं चाहता और किसीके प्रति दया और सहिष्णुता का भाव उसमें दिखाई नहीं देता ! यहाँ लोग दान पुण्य भी महिमामंडन की अभिलाषा के साथ करते हैं ! जो वास्तव में ज़रूरतमंद हैं उनकी ओर किसीका ध्यान नहीं जाता ! कटु सत्य को उजागर करती एक प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति !

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