17 सितंबर, 2010

एक कवि ऐसा भी

जब भी कुछ लिखता है ,
उसे सुनाना चाहता है ,
कुछ प्रोत्साहन चाहता है ,
पर कोई श्रोता नहीं मिलता ,
जब तक सुना नहीं लेता ,
उसे चैन नहीं आता ,
कोई भूल से फँस जाए ,
कविता सुनना भी ना चाहे ,
बार बार उसे रोक कर,
कई बहाने खोज खोज कर ,
कविता उसे सुनाता है ,
तभी चैन पाता है ,
भूले से यदि मंच पर ,
ध्वनिविस्तारक हाथ में आजाए ,
चाहे श्रोताओं का शोर हो ,
या तालियों कि गड़गड़ाहट,
कुछ अधिक जोश में आ जाता है ,
कविता पर कविता सुनाता है ,
अपने लेखन पर मुग्ध होता ,
कविसम्मेलन कि समाप्ति पर ,
पंडाल खाली देख सोचता,
अभी भीड़ आएगी उसे बधाई देने ,
पर ऐसा कुछ नहीं होता ,
केवल एक पहलवान वहां है ,
उससे प्रश्न करता है ,
कैसा लगा कविसम्मेलन ,
और मेरा कविता पाठ ,
वह तो जैसा था सो था ,
मैं उसे ढूँढ रहा हं ,
जिसने तुम्हें बुलाया था ,
वह आज भी आशान्वित है ,
कहीं से तो बुलावा आएगा ,
कोई उसे सराहेगा |
आशा

13 टिप्‍पणियां:

  1. हा हा हा ! बहुत बढ़िया ! वैसे रचना तो पुरानी है लेकिन कलेवर नया है इसलिए मज़ा आया!

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  2. पहले तो मैं आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हूँ मेरे ब्लॉग पर आने के लिए और टिपण्णी देने के लिए!
    बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!

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  3. उससे प्रश्न करता है ,
    कैसा लगा कविसम्मेलन ,
    और मेरा कविता पाठ ,
    वह तो जैसा था सो था ,
    मैं उसे ढूँढ रहा हं ,
    जिसने तुम्हें बुलाया था ,
    वह आज भी आशान्वित है ,
    कहीं से तो बुलावा आएगा ,
    कोई उसे सराहेगा |
    --
    बहुत सुन्दर रचना!
    सोचने को विवश करती हुई!

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  4. bhn ji aese kvi aek nhin anek hen or in logon me se hi bhtrin kvi moqa milne pr sabit bhi hue hen. khtar khan akela kota rajthan

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  5. जो कुछ आपने कवियों के बारे में लिखा है वह इन दिनों ब्लागरों के साथ भी हो रहा है
    आत्ममुग्धता के शिकार हो गए हैं भाई लोग

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  6. सोचने को विवश करती हुई!
    ......सुन्दर रचना!

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