20 सितंबर, 2010

प्रतीक्षा

ऊन और सलाई ले हाथों में ,
बैठी थी कुनकुनी धुप में ,
जाने किस उधेड़बुन में ,
ना जाने क्या सोच रही थी ,
जैसे ही कुछ बुनती थी ,
सोच सोच मुस्काती थी ,
आने वाले की तैयारी में ,
कुछ अधिक व्यस्त हो जाती थी ,
कभी बेटी या बेटा चुनती थी ,
या प्यारा सा नाम सोचती थी ,
फिर भी चिंता,
साथ न छोड़ पाती थी ,
कारण जब भी जानना चाहा ,
शर्मा कर लाल हो जाती थी ,
पर चेहरे पर चिंता की लकीरें ,
यह साफ बयानी करती थीं ,
मन में छिपी बेचैनी ,
चेहरे पर आती जाती थी ,
प्रसव पूर्व भय मन का ,
उजागर करती थी ,
शायद यही कारण होगा ,
वह सहज नहीं हो पाती थी ,
हाथों में सलाई की गति,
और तेज हो जाती थी ,
जब एक फंदा उतरता था ,
कई प्रश्नों से घिरा ,
स्वयं को पाती थी ,
डरती थी यदि बच ना पाई
तब आने वाले का क्या होगा ,
और यदि वह ना आ पाया ,
इस तैयारी का क्या होगा ,
मन करता था पास बैठूं ,
प्यार से उसे समझाऊं ,
जब तक चिंता मुक्त ना होगी ,
स्वस्थ शिशु कैसे पाएगी ,
अपना सारा प्यार,
किस पर लुटाएगी |

आशा

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत स्वाभाविक चिन्ता ...अच्छी रचना ...

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  2. काश मेरी पत्नी जी इस सुन्दर सी कविता को पढ़ पाती क्योँकि उनका भी यही नाजुक दौर चल रहा है। नये महमान के आने का बस दो चार दिन का इँतजार हैँ। बहुत ही कोमल भावोँ से सजी अनुठी कविता । दिल को छू जाने वाली पँक्तियाँ। आभार! -: VISIT MY BLOG :- ऐ-चाँद बता तू , तेरा हाल क्या हैँ। ............कविता को पढ़कर अपने अमूल्य विचार व्यक्त करने के लिए आप सादर आमंत्रित हैँ। आप इस लिँक पर क्लिक कर सकती हैँ।

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  3. अच्छी और सारगार्भित रचना ! बधाई !

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  4. बहुत अच्छा लिखा है आपने,
    ये पंक्तियाँ दिल को स्पर्श करती हैं ....
    मन में छिपी बेचैनी ,
    चेहरे पर आती जाती थी ,
    प्रसव पूर्व भय मन का ,
    उजागर करती थी ,
    शायद यही कारण होगा ,
    वह सहज नहीं हो पाती थी ,
    हाथों में सलाई की गति,
    और तेज हो जाती थी ,


    प्रणाम के साथ शुभकामनाएं....

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  5. तरल संवेदना और सहज अभिव्यक्ति!
    जब एक फंदा उतरता था ,
    कई प्रश्नों से घिरा ,

    बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
    समझ का फेर, राजभाषा हिन्दी पर संगीता स्वरूप की लघुकथा, पधारें

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  6. mnhsthiti ko bhut hi shiddt se ukera hai aapne .bhut se gavoo kya shhro me bhi ek chinta our bhi judi hoti hai ki khi ldki na ho jaye , tb kya hoga lekin aapne ji dhandhs dilaya hai vo bhi atynt prshnshneey hai .
    sargrbhit prstuti ke liye dhnywaad .

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  7. प्रसवपूर्व की अवस्था का कवितामय विवरण पहली बार पढा है! आपकी कवि सोच को नमन। और इतने भावपूरित शब्द हैं कि इसे संपूर्ण कविता मानते हुए कोई हिचक नहीं हो रही है। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!

    और समय ठहर गया!, ज्ञान चंद्र ‘मर्मज्ञ’, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!

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  8. जैसे ही कुछ बुनती थी ,
    सोच सोच मुस्काती थी ,
    आने वाले की तैयारी में ,
    कुछ अधिक व्यस्त हो जाती थी ,

    The most cherished moments.

    .

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत बढ़िया रचना ! आपके विषयों की विविधता सदैव चकित करती है ! अब तो ऐसा लगता है आप हर बात सोचती ही कविता में हैं ! बहुत खूब !

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