27 सितंबर, 2010

यादें मिटती नहीं

कविसम्मेलन जब भी होते थे ,
उत्सुक्ता रहती थी ,
कुछ लोगों को सुनने की ,
उनमें से थे वे एक ,
इतनी गहराई से लिखते थे ,
उस में ही खो जाते थे
जब मंच पर आते थे ,
सब मंत्र मुग्ध हो जाते थे ,
कर्तल ध्वनि रुकती न थी ,
"एक बार और " का स्वर ,
पंडाल मैं छा जाता था ,
वह मधुर स्वर उनका ,
भाव विभोर कर जाता था ,
भोर कब हो जाती थी ,
पता नहीं चल पाता था ,
पहली बार सुना जब उनको ,
सब ने बहुत सराहा था ,
मैने अपनी अभिरुचि का भी ,
भान उन्हें कराया था ,
मित्रता जाने कब हुई ,
अब याद नहीं है ,
प्रायः साथ रहते थे ,
रचनाओं में खोए रहते थे ,
कविता की गहराई के लिए ,
जब भी प्रश्न किया मैने ,
एक ही उत्तर होता था ,
"जब दर्द ह्रदय में होता है ,
कोई मन छू लेता है ,
तभी नया सृजन होता है ",
जाने कब अनजाने में ,
व्यवधानों का क्रम शुरू हुआ ,
कई बाधाएं आने लगीं ,
दिन से सप्ताह और फिर महिने,
बिना मिले गुजरने लगे ,
नई रचना जब पढ़ने को न मिली ,
सोचा क्यूँ न समाचार ले लूँ ,
वे शहर छोड़ चले गए थे ,
बिना बताए चले गए थे ,
खोजा बहुत पर मिल ना पाए ,
बार बार विचार आया ,
मैं क्यूँ संपर्क ना रख पाया ,
दिन बीते,मांस बीते ,
और साल भी गुजर गया ,
भागता कब तक मृगतृष्णा के पीछे ,
उस पर भी विराम सा लग गया ,
आज था एक लिफाफा हाथ में ,
डाकिया दे गया था ,
जैसे ही पत्र खोला ,
मन झूम उठा ,मालूम है क्यूँ ?
यह पत्र उन्हीं का था ,
जिसमे लिखा था ,
"मैं बहुत व्यस्त हो गया हूं ,
संपादक जो हो गया हूं ,
अब सृजन नहीं करता ,
स्वयं कहीं गुम हो गया हूं ,
क्षमा करना मित्र मेरे ,
तुम्हें बता नहीं पाया ,
जब शहर छोड़ यहाँ आया ,
यादें कभी मिटती नहीं हैं ,
मिलने की ललक जगाती हैं ,
बेचैन मुझे कर जाती हैं ,
हूं बहुत व्यस्त ,
संपादक जो होगया हूं "|
आशा

5 टिप्‍पणियां:

  1. प्रभावशाली और मार्मिक अभिव्यक्ति ! अति सुन्दर !

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  2. भई वाह ! सम्पादक जी को नमन ! लेकिन ऐसी भी क्या व्यस्तता कि मित्रों को बिना बताए चले गए और फिर ना तो कोई खोज खबर ली ना ही अपना पता दिया ! शिकायत तो वाजिब है ! वैसे अच्छी रचना !

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  3. बहुत बढ़िया!
    --
    कविता रचने के लिए
    सुन्दर बिम्ब का प्रयोग किया है आपने!

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