04 अक्टूबर, 2010

सहनशीलता

सरल नहीं सहनशील होना ,
इच्छा शक्ति धरा सी होना ,
है धरती विशाल फिर भी ,
नहीं दूर अपने कर्त्तव्य से ,
सतत परिक्रमा करती सूर्य की ,
फिर भी नहीं थकती ,
देता है शीतलता उसे चंद्र ,
पर आदित्य से डरता है ,
जैसे ही उसे देखता है ,
जाने कहां छिप जाता है ,
गर्मी सर्दी और वर्षा ,
सभी सहन करती है ,
जन्म से आज तक ,
धधकती आग ,
हृदय में दबाए बैठी है ,
जलनिधि रखता,
सारा बोझ उसी पर ,
वहन उसे भी करती है ,
चांद सितारों की बातें की सबने ,
पर उसे किसी ने नहीं जाना ,
ना ही ठीक से पहचाना ,
जब कभी विचलित होती है ,
हल् चल उसमें भी होती है ,
ज्वालामुखी धधकते हें ,
क्रोध प्रदर्शित करते हें ,
वह अशांत सी हो जाती है ,
वह फिर यह सोच,
शांत हो जाती है ,
जो जीव यहां रहते हें ,
उसके आश्रय में पलते हें ,
आखिर उनका क्या होगा ?
उस जैसा धीर गंभीर होना ,
इतना सरल नहीं है ,
सहनशीलता उसकी अनोखी ,
जो अनुकरणीय है |
आशा |

8 टिप्‍पणियां:

  1. accha sandesh detee rachana.sansheelata kee misaal kai par ineka kop of jwalamukhee foot padata hai.........
    aur krodh me jo hiltee hai shahro ko dhwans kar chodtee hai.......
    sansheelta bhee ek seema tuk hee theek hai........
    santulan jarooree hai..........
    Anytha na le.......

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  2. बहुत अच्छी प्रस्तुति ...नारी की सहनशीलता का गुण उजागर कर दिया है धरा के साथ

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  3. धरती सी सहनशील होना सबके बस की बात नही । सुंदर कविता ।

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  4. आदरणीया आशा अम्मा
    प्रणाम !
    धैर्य धारिणी धरती और नम्रता की प्रतिरूप नारी के संदर्भ में आपकी प्रस्तुत रचना बहुत अच्छी लगी ।

    बिल्कुल सही कहा -
    सरल नहीं सहनशील होना

    आभार सहित शुभकामनाएं
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  5. बहुत सार्थक सन्देश देती सुन्दर रचना ! धरती सा धैर्य और गंभीरता और अम्बर सा विशाल ह्रदय जिसके पास हो वह अनमोल है ! बहुत अच्छी लगी यह रचना !

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  6. रचना तो बहुत बढ़िया है!
    सुन्दर अभिव्यक्ति....बहुत सुन्दर...आभार..

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