तुम सामने क्यूँ नहीं आते ,
मुंह छुपाए रहते हो ,
रातों की नींद ,
चुरा लेते हो ,
यह सजा रोज,
क्यूँ देते हो ,
सपनों में कई रंग ,
दिखाते रहते हो ,
होते ही सुबह ,
मैं व्यस्त हो जाती हूं ,
अपने आप में ,
खो जाती हूं ,
अक्सर भूल जाती हूं ,
क्या क्या देखा रात्रि में
कुछ बातें ही,
याद रह पाती हें ,
मिलते लोग ,
जो स्वप्नों में ,
दिन में भी ,
दिखाई देते हें ,
आदान प्रदान विचारों का ,
उनसे भी होजाता है ,
क्यूँ कि वे,
परिचित होते हें ,
पर तुम्हारे साथ,
ऐसा नहीं है ,
हर रात तुम आते हो ,
ना जाने हो कौन ,
मुझे बेचैन,
कर जाते हो ,
तुम्हें पहचान नहीं पाती ,
सोचती हूं ,
पर याद नहीं आते ,
किस बात की सजा ,
हर बार मुझे देते हो ,
हूं यदि दोषी तुम्हारी ,
तो सजा देने,
ही आजाओ ,
मुझे अपने स्वप्नों से ,
मुक्त तो कर जाओ ,
कभी लगता हैमुझे ,
अचेतन मन की ,
उपज तो नहीं ,
जिसमे कई स्मृतियां
दबी होती हें ,
जब रात्रि में होताहै ,
वह सक्रीय ,
विस्मृतियाँ होती सजीव ,
कहीं तुम उनमें से,
एक तो नहीं |
आशा
चेतन-अवचेतन मन की अनुभूतियाँ काव्यमयी हो गईं
जवाब देंहटाएंवाह वाह
adure khvaabon ki aek achchi prstuti he . akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी यह रचना ! स्वप्न और यथार्थ का रहस्य अनसुलझा ही बना रहने दीजिए तभी जीवन में आनंद और रोमांच की सृष्टि होगी ! सब कुछ समझ में आ गया तो उत्सुकता समाप्त हो जायेगी और फिर धीरे धीरे आनंद भी ! बहुत सुन्दर रचना ! बधाई !
जवाब देंहटाएंchetan achetan mun ke bhavo kee sunder abhivykti......
जवाब देंहटाएंAabhar
कई बार यथार्थ सपने जैसा लगता है और सपना यथार्थ जैसा। आपकी कविता दोनों के रहस्य का अच्छा विश्लेषण करती प्रतीत होती है।
जवाब देंहटाएंस्वप्न और हकीकत में अच्छा अंतर्द्वंद दिखाया है ..सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंअद्भुत रचना!
जवाब देंहटाएंवाह आशा जी स्वप्न और सत्य का रहस्य खोजती हुई ये रचना अच्छी लगी ।
जवाब देंहटाएंअचेतन मन की ऊपज, ही स्वप्न है। और यथार्थ उसे पकड़ने की जद्दोजहद। बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंमध्यकालीन भारत-धार्मिक सहनशीलता का काल (भाग-२), राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
शुरुआत से लेकर अंत तक आपने बाँध कर रखा... कविता बहत अच्छी लगी....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता....खूबसूरत अभिव्यक्ति...बधाई.
जवाब देंहटाएं__________________________
"शब्द-शिखर' पर जयंती पर दुर्गा भाभी का पुनीत स्मरण...
चेतन अवचेतन मन के द्वंद को बहुत ही खूबसूरती से प्रस्तुत किया है……………गज़ब का विश्लेषण्।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंअक्सर जो लोग दिन की व्यस्तता में याद नही आते ,,, वो सपनों में सताते हैं ..... अच्छा ही है कुछ लोग सपनों से बाहर नही आते .... गहरी रचना है ...
जवाब देंहटाएंमन के भावों को आपने बडे सलीके से संजोया है।
जवाब देंहटाएंसभी टिप्पणी कर्ताओं का ब्लॉग पर आने के लिए बहुत बहुत आभार |
जवाब देंहटाएंइसी प्रकार स्नेह बनाए रखें |
आशा