घना घनेरा साल वन
ऊँचे-ऊँचे वृक्ष वृन्द
सूर्य किरणों से
हाथ मिलाने की होड़ में
ऊँचे और ऊँचे होते जाते
एक पेड़ की टहनी से
बिछड़ा एक पीला सूखा पत्ता
मंद हवा के साथ-साथ
गोल-गोल घूम रहा
धीमी गति से आते-आते
नीचे की धरती ताक रहा
कई विचारों का मंथन
और मन में उथल पुथल
अपना अस्तित्व तलाश रहा
गहन मनन चिंतन
बहुत बार किया उसने
पर एक ही झटके में
जैसे ही धरती छुई उसने
अपनों से बिछुड़ जाने पर
व्यथित बहुत मन हुआ
कुछ पल भी ना बीते होंगे
एक राहगीर ने अनजाने में
उस पर अपना पैर रखा
जैसे ही पैर पड़ा उस पर
वह बच न सका
टूट गया
अपनों से अलग होने का दुःख
मन ही मन में रह गया
कुछ सोच भी न पाया था कि
स्वयं धूल धूसरित हुआ
धरती में विलीन हुआ
और सो गया चिर निंद्रा में
दूसरी सुबह भी ना देख सका |
आशा
patee ke dard ko bakhubi byan kiya hai .
जवाब देंहटाएं.........bahut hi sunder
isi par do line...pesh hai
जवाब देंहटाएंसूख जाना ही है उसको इक रोज़,
तो पत्ता डाली पर पनपता क्यूँ है....
डाल से बिछुड़ा एक पत्ता
जवाब देंहटाएंEk peepal ka patta idhar bhi hai bas vilin nahi ho paya..
जिंदगी के मर्म को सरल सहज शब्दों में उकेरती, गहन अर्थों को समेटती एक खूबसूरत और भाव प्रवण रचना. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.
जीवन के निर्मम सत्य को उजागर करती एक सार्थक रचना !
जवाब देंहटाएं"माटी ही ओढ़न, माटी बिछावन, माटी का तन बन जाएगा
जब माटी में सब मिल जाएगा !"
बहुत सुन्दर रचना !
डाल से बिछड कर अंत तक पत्ते के माध्यम से एक इंसान के ज़िंदगी के सत्य को भी उकेर दिया है ...बहुत अच्छी रचना ..
जवाब देंहटाएंजीवान दर्शन को बहुत सरल शब्दों में निरूपित करती रचना।
जवाब देंहटाएंमार्मिक रचना। जो आया है उसे एक दिन जाना ही है। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत रचना, जिंदगी के व्यावहारिक धरातल कोस्पर्ष करती कविता. अपना बचपन याद आ गया. एक कविता पढ़ी थी
जवाब देंहटाएंज्यों निकल कर बादलों की गोद से थी अभि एक बूँद कुछ आगे बढ़ी देव मेरे भाग्य में है क्या बड़ा मै बचूंगी या गिरूंगी शूल में.........एक सुन्दर सीप का मुह था खुला छु पड़ी जा मोती बनी........लोग युऊँ ही हैं झिझकते जब छोड़ना पड़ता है घर........लेकिन सच तो यही है वे ही मोती बनते हैं, कुंदन बनते है,,इंसान और महा मानव बनते हैं......
दिल को छु लेने वाली रचना ... ये ही जीवन है आशा जी ..कोई तो एक पल में जीवन जी लेता है तो किसी किसी को जीवन में एक पल भी नसीब नहीं होता जीने के लिए
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