16 नवंबर, 2010

इच्छा अधूरी रही मन में

इच्छा अधूरी रही मन में ,
कि दो कदम साथ चलो ,
बेगानों का साथ छोड़ ,
कभी अपनों को भी याद करो ,
यूँ चुप ना रहो अनसुनी न करो ,
कुछ तो बोलो बात करो ,
पर तुम मौन हुए ऐसे ,
खुद को अपने में कैद किया ,
चाहा पर लब नहीं खोले ,
शब्द मुँह से नहीं निकले ,
हो गये इतनी दूर कि ,
यह दूरी नहीं पट पाती ,
गैरों के साथ के अहसास की ,
छाया नहीं मिट पाती,
जब भी मौन टूटे, दिल बोले ,
मन का बोझ हल्का करना हो ,
मुझे याद कर लेना ,
ज़रा सी जगह दिल के कोने की ,
मेरे लिए भी रख लेना ,
किसी और को ना देना ,
शायद यह दूरी मिट जाये ,
कभी मेरी याद आये ,
और इच्छा पूरी हो पाये ,
दो कदम साथ चलने की |


आशा

7 टिप्‍पणियां:

  1. खूबसूरत अभिव्यक्ति ...खुला आमंत्रण ..दर्द को बांटने का

    जवाब देंहटाएं
  2. "....शब्द मुंह से नहीं निकले ,
    हो गए इतनी दूर कि ,
    यह दूरी नहीं पट पाती ,
    गैरों के साथ के अहसास की ,
    छाया नहीं मिट पाती,........."

    बेहतरीन भावाभिव्यक्ति!

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत बढ़िया भावाभिव्यक्ति ! अति सुन्दर !

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर प्रवाहमान रचना ! आपकी लेखनी भी निरंतर चलती रहे यही कामना है !

    जवाब देंहटाएं
  5. पर तुम मौन हुए ऐसे ,
    खुद को अपने में कैद किया ,
    चाहा पर लव नहीं खोले ,
    शब्द मुंह से नहीं निकले ,
    हो गए इतनी दूर कि ,
    यह दूरी नहीं पट पाती ,
    आशा जी मार्मिक अभिव्यक्ति है। किसी अपने की दूरी बहुत सालती है। रचना दिल को छू गयी। शुभकामनायें।

    जवाब देंहटाएं
  6. kavita ki har pankti dil ko gahraiyon taq chhoo gayee.bahut hi marmik abhivyakti.

    जवाब देंहटाएं
  7. Antarman ko andolit karne wali kavitaka bhav prasansiya hai.bahut hi umda post.

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: