मन ने सोचा खोली आँखें ,
देखा अपने आस पास ,
था कुछ विशिष्ट इन आँखों में ,
कल्पना ने उड़ान भारी
ली अनुमति इन आँखों से ,
दूर जाती एक पगडंडी तक ,
जो खो जाती घने जंगल में ,
हैं अनगिनत निशान उस पर ,
हैं दस्तावेज उन क़दमों के ,
जो सुबह शाम बनते मिटते ,
कहते कथा वहाँ रहने वालों की ,
नित नए निशान करते वर्णन ,
उस दिन हुई घटनाओं की |
बहुत निकट झुण्ड हिरणों का ,
ओर दर्शन बायसन समूह का ,
एकाएक सुन दहाड़ बाघ की ,
सारा जंगल गूँज उठा ,
पशु पक्षी कॉल दे दे कर ,
उपस्थिति उसकी दर्शाने लगे ,
जैसे ही वह गुज़र गया ,
शांत हुआ पूरा जंगल ,
शेष था कहीं-कहीं बहता पानी ,
ठंडी हवा और घना जंगल |
जाने अनजाने कितनी बातें,
सहेजी गईं कल्पना में ,
हालत कुछ ऐसी हुई ,
ह़र जगह वही दिखने लगा ,
जो देखा मन की आँखों ने ,
और सिमटने लगा ,
दृश्यों में, कृतियों में |
एक झाड़ी की दो शाखाएँ ,
पीछे उसके बड़ा पत्थर ,
हिरन सा ही दिखने लगा ,
पास पहुँच जब देखा ,
पाया केवल पेड़ और पत्थर |
सच्चाई सामने आई ,
तरस भी आया एक बार ,
मन की आँखों पर ,
कल्पना की उड़ान पर ,
फिर भी जो आनन्द मिला ,
भूल ना पाई आज तक |
हैं आखिर मन की आँखें ,
जो सोचती हैं वही देखती हैं ,
होता है ऐसा क्यूँ ?
यह तक नहीं समझ पाई ,
इस क्यूँ से परेशानी क्यूँ ,
जब मिलता भरपूर ,
आनंद मन की आँखों से |
आशा
होता है ऐसा क्यूं ?
जवाब देंहटाएंयह तक नहीं समझ पाई ,
इस क्यूं से परेशानी क्यूं ,
जब मिलता भरपूर ,
आनंद मन की आँखों से
सुंदर अतिसुन्दर , कई अर्थों को अपने में समाये हुई रचना, बधाई
भ्रम यदि सुन्दर और आनंदवर्धक हों तो उन्हें बने रहने देना चाहिए ना ! आपको प्रसन्नता ही तो देते हैं और आपकी कल्पना को भी ताज़गी मिलती है ! सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंदूर जाती एक पगडंडी तक ,
जवाब देंहटाएंजो खो जाती घने जंगल में |
हें अनगिनत निशान उस पर ,
है दस्तावेज उन क़दमों की ,
जो सुबह शाम बनते मिटते ,
कहते कथा वहां रहने वालों की ...
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beautiful creation ! , revealing the facts of life.
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तरस भी आय ाइक बार मन की आंखों पर कल्पना मी उड़ान पर।
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्य्क्ति। ब्धाई।
सुंदर रचना
जवाब देंहटाएं"....एक झाडी की दो शाखाएं ,
जवाब देंहटाएंपीछे उसके बड़ा पत्थर ,
हिरन सा ही दिखने लगा ,
पास पहुच कर जब देखा ,
पाया केवल पेड़ ओर पत्थर |....."
कुछ लोग सिर्फ कल्पना की मृग मरीचिका में ही जीवन जीते हैं ऐसे लोगों को कटु वास्तविकताओं को समझने और सत्य को स्वीकार करने की प्रेरणा देती कविता.
फिर भी जो आनन्द मिला ,
जवाब देंहटाएंभूल ना पाई आज तक |
हें आखिर मन की आंखें ,
जो सोचती हें बही देखती हें ,
होता है ऐसा क्यूं ?
यह तक नहीं समझ पाई ,
इस क्यूं से परेशानी क्यूं ,
जब मिलता भरपूर ,
आनंद मन की आँखों से |
कभी कभी इंसान ख्वाब मे ही जीना चाहता है शायद इसीलिये जानते हुये भी भ्रम मे जीना चाहता है शायद आंतरिक सुख के लिये।
anupam abhivykti.
जवाब देंहटाएंमन की आँखों से बहुत कुछ देखा जा सकता है ...अच्छी अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आकार प्रोत्साहित करने के लिए आभार |
जवाब देंहटाएंआशा
यह तक नहीं समझ पाई ,
जवाब देंहटाएंइस क्यूं से परेशानी क्यूं ,
जब मिलता भरपूर ,
आनंद मन की आँखों से |
बहुत खूबसूरत आशा जी ... किना सुन्दर शब्द दिए हैं आपने इस कल्पना को ... वाह .. जवाब नहीं ...
man ki aankhon se hi hum kitni sudar kalpnaon ke sansaar ka bhraman kar pate hai -iska sudar varnan kiya hai aapne .aabhar
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