दो पहियों की बैलगाड़ी ,
खींचते बैल जिसे ,
लकड़ी बाँस लोहा अदि,
होते साधन बनाने के ,
भार चाहे जितना होता ,
पहिये ही उसे वहन करते ,
अपना कर्त्तव्य समझ वे ,
पीछे कभी नहीं हटते |
है परिवार भी एक बैलगाड़ी ,
पति पत्नी गाड़ी के पहिये ,
संबंधी कभी सहायक होते ,
बच्चे मन का बोझ हरते ,
हो जाता पूरा परिवार ,
गाड़ी जीवन की चलती जाती ,
पर भार होता केवल ,
दोनों के कन्धों पर |
आशा
sarahneey .........
जवाब देंहटाएंshubhkamnae..........
अपने जीवन में हर इन्सान को अपने कर्तव्यों का पालन करते रहना चाहिए और इससे पीछे नहीं हटना चाहिए.
जवाब देंहटाएंसरल भाषा में एक अर्थपूर्ण आह्वान करती हुई प्रस्तुति.
सादर-
अर्थपूर्ण आह्वान करती हुई सुन्दर प्रस्तुति|
जवाब देंहटाएंसीधी साधी भाषा में गंभीर बात कहने का ढंग , अच्छा लगा बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति आशा जी ..
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी अर्थपूर्ण रचना .. ऐसी रचनाएँ अक्सर आशा का संचार करती हैं ... लाजवाब ..
जवाब देंहटाएंसार्थक और अर्थपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंजीवन दर्शन
बहुत सुन्दर और प्रेरक रचना ! बधाई !
जवाब देंहटाएंसराहनीय रचना !
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