19 नवंबर, 2010

बैलगाड़ी

दो पहियों की बैलगाड़ी ,
खींचते बैल जिसे ,
लकड़ी बाँस लोहा अदि,
होते साधन बनाने के ,
भार चाहे जितना होता ,
पहिये ही उसे वहन करते ,
अपना कर्त्तव्य समझ वे ,
पीछे कभी नहीं हटते |
है परिवार भी एक बैलगाड़ी ,
पति पत्नी गाड़ी के पहिये ,
संबंधी कभी सहायक होते ,
बच्चे मन का बोझ हरते ,
हो जाता पूरा परिवार ,
गाड़ी जीवन की चलती जाती ,
पर भार होता केवल ,
दोनों के कन्धों पर |


आशा

9 टिप्‍पणियां:

  1. अपने जीवन में हर इन्सान को अपने कर्तव्यों का पालन करते रहना चाहिए और इससे पीछे नहीं हटना चाहिए.
    सरल भाषा में एक अर्थपूर्ण आह्वान करती हुई प्रस्तुति.

    सादर-

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  2. अर्थपूर्ण आह्वान करती हुई सुन्दर प्रस्तुति|

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  3. सीधी साधी भाषा में गंभीर बात कहने का ढंग , अच्छा लगा बधाई

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  4. बहुत सुंदर प्रस्तुति आशा जी ..

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  5. बहुत ही अच्छी अर्थपूर्ण रचना .. ऐसी रचनाएँ अक्सर आशा का संचार करती हैं ... लाजवाब ..

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  6. सार्थक और अर्थपूर्ण रचना
    जीवन दर्शन

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  7. बहुत सुन्दर और प्रेरक रचना ! बधाई !

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