है ईश्वर का वास मनुष्य में
जानते हैं सभी
पर फिर भी क्यूँ
अच्छाई और बुराई
साथ-साथ रह पाती हैं
अच्छाई दबती जाती है
मन के किसी कोने में
खोता जाता है मनुष्य
बुराई के दलदल में
जब भी किसी ऐसे व्यक्ति से
हो जाता संबंध
वह रिश्ता नहीं होता
होता है केवल समझौता
धीरे-धीरे अवगुण भी
अच्छे लगने लगते हैं
और साथ रहते-रहते
रिश्ता निभाने लगते हैं
है मनुष्य खान अवगुण की
बुराई का वर्चस्व बना रहता
बुद्ध और महावीर तो
बहुत कम होते हैं
मन में यदि ईश्वर रहता है
ऐसा क्यूँ होता है
चाहे जितनी करें प्रार्थना
प्रभाव नगण्य होता है
एक ही बात दो लोग साथ-साथ
जब भी देखते हैं
प्रतिक्रिया भिन्न होती है
है अच्छाई और बुराई
मन की ही तो उपज
फिर ईश्वर की सत्ता हो जहाँ
बुराई क्यूँ पनपती है |
आशा
बहुत गहन प्रश्न उठती हुई -
जवाब देंहटाएंसोचने पर मजबूर कर रही है आपकी कविता -
अति उत्तम भाव -
बधाई एवं शुभकामनाएं .
बेहतरीन भाव!
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंसोचने पर विवश करती बेहतरीन रचना। बुराई क्यूँ पनपती है ?...इंतज़ार रहेगा इस प्रश्न के उत्तर का।
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aashaa ji dil ko chirte aapke hr svaal laajvab he. akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंacchee rachana.....
जवाब देंहटाएंsara darmdar drushtikon par tika hai.........
ईश्वर अर्द्ध नारीश्वर है, परस्पर विरोधी गुणों का युग्म है. गुण तीन है -सत्व, राजस और तामस. कर्म -संस्कार और प्रारब्ध के कारण न्मनोव्त्रित्ति में इन्ही में से किसी एक कि प्रधानता हो जाती है, इसलिए एक ही माता -पिता कि संतानों में भी वैविध्य पाया जाता है. समानता -विषमता पाई जाती है.....गुरु कृपा से इसमें परिवर्तन लाया जा सकता है. आवश्यकता है पहले हमें यह बोध तो हो कि रोग क्या है? रोग बतानेवाला और निदान करने वाला एक ही है.- 'सतगुरु'. और वह ईश कृपा से ही लभ्य भी है.
जवाब देंहटाएंबहुत सारगर्भित और विचारोत्तेजक रचना ! अति सुन्दर ! आपकी रचनाओं में दर्शन तत्व की प्रधानता होती जा रही है ! गहन सोच को दर्शाती बहुत अच्छी रचना !
जवाब देंहटाएंसरल सहज शब्दो मे गहन अर्थों को समेटती एक खूबसूरत और भाव प्रवण रचना. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.