तुम मुझे ना पहले समझे ,
और न कभी समझ पाओगे ,
हर बात का कुछ अर्थ होता है ,
अर्थ के पीछे छिपा ,
कोई सन्देश होता है ,
वह भी यदि ना समझ पाए ,
तो क्या फायदा बहस का ,
बिना बात तनाव झेलने का ,
इसी तरह यदि रहना था ,
नदी के दो किनारों की तरह ,
जो साथ तो चलते हैं ,
पर कभी मिल नहीं पाते ,
इसका दुःख नहीं होता ,
पर है यह फर्क सोच का ,
मुझे बार-बार लगता है ,
है इतनी दूरी आखिर क्यूँ ?
यह दूरी है या कोई मजबूरी ,
ऐसा भी यदि सोचा होता ,
अपने को दूसरे की जगह ,
रखा होता फिर विचारा होता ,
तब शायद समझ पाते ,
प्यार क्या होता है ?
होती है भावना क्या ?
साथ-साथ रहना ,
धन दौलत में धँसे रहना ,
क्या यही ज़िंदगी है ?
भावना की कद्र ना कर पाये ,
तो क्या लाभ ऐसी ज़िंदगी का ,
मैं जमीन पर फैला पारा नहीं ,
जिसे उठाना बहुत कठिन हो ,
हूँ हाड़ माँस का इंसान ,
जिसमें दिल भी धड़कता है ,
मुझे समझ नहीं पाते ,
दिल की भाषा पढ़ नहीं पाते ,
तुम कैसे न्याय कर सकते हो ,
अपने साथ या मेरे साथ,
हो कोसों दूर भावनाओं से ,
अपनी बात पर अड़े रहते ,
है कहाँ का न्याय यह ,
कभी सही गलत समझा होता ,
कुछ झुकना भी सीखा होता ,
तब शायद कोई हल होता ,
किसी की क्या समस्या है ,
यदि दूर उसे नहीं कर सकते ,
दो बोल सहानुभूति के भी ,
मुँह से यदि निकल पाते ,
कुछ बोझ तो हल्के होते ,
पर शायद मेरा सोच ही है गलत ,
नागरिक दूसरे दर्जे का ,
पहली पंक्ति में आ नहीं सकता ,
अपना अधिकार जता नहीं सकता ,
वह सोचता है क्या ,
शब्दों में बता नहीं सकता |
आशा
मन का दर्द खूबसूरती से बताया है
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं
स्त्री के जीवन का अधिकांश समझौते में ही बीत जाता है। अफसोसजनक!
जवाब देंहटाएंजितनी बार आपकी कवितायेँ पढ़ती हूँ कुछ-न-कुछ सीखने को ही मिलता है, और कई बार तो लगता है जैसे यहीं-कहीं की कहानी है...
जवाब देंहटाएंनागरिक दूसरे दर्जे का ,
जवाब देंहटाएंपहली पंक्ति में आ नहीं सकता ,
अपना अधिकार जता नहीं सकता ,
वह सोचता है क्या ,
शब्दों में बता नहीं सकता |
हमेशा ही नारी को दूसरा दर्जा दिया जाता है ...उसके इस दर्द को बखूबी लिखा है ...
आपकी रचनाओं के संदेश प्रेरक होते हैं।
जवाब देंहटाएंइस बार भी।
बड़ी प्रखरता से मन की उथल पुथल को अभिव्यक्ति दी है ! शायद घर घर की यही कहानी है ! आम नारी के मनोभावों को खूबसूरती के साथ बखाना है ! बधाई एवं शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंदिल में छुपे दर्दको बाखूबी उकेरा है आपने ... ये सच है जीवन का जो धन की भाषा समझता है ...प्रेम की भाषा नही समझ पाता ...
जवाब देंहटाएंpahle ki tarah, ek sunder kavita.
जवाब देंहटाएंदिल के दर्द को बखूबी उभारा है ... बहुत सुन्दर कविता !
जवाब देंहटाएंसारगर्भित रचना सोचने को बाध्य करती हुई!
जवाब देंहटाएं