23 नवंबर, 2010

है यह जीवन पान फूल सा

है यह जीवन पान फूल सा ,
हवा लगे मुरझा जाता ,
कैसे इसे सँवारा जाये ,
यह भी नहीं ज्ञात होता ,
हर मोड़ पर झटके लगते हैं ,
उर में दर्द उभरता है ,
हो जाती जब सीमा पार ,
हो जातीं बाधाएं पार ,
तभी मुक्ति मिलती है ,
आत्मा बंधन मुक्त होती है ,
इससे अनजानी नहीं हूँ ,
फिर भी मोह नहीं जाता ,
जीवन और उलझता जाता ,
इस सत्य से कब मुँह मोड़ा ,
क्या सही क्या गलत किया ,
गहन दृष्टि भी डाली ,
विचार मंथन भी किया ,
पर हल कुछ भी ना निकला ,
फिर भी इसकी देखरेख ,
बहुत कठिन लगती है ,
पान फूल से जीवन को ,
जाने कैसे नजर लग जाती है ,
हर झटका अब तक पार किया ,
कोई और उपाय न दिखाई दिया ,
कब आशा निराशा में बदली ,
इस तक का भी ना भान हुआ ,
आगे क्या होगा पता नहीं ,
बस दूर सच्चाई दिखती है ,
है यह जीवन नश्वर ,
और निर्धारित साँसों का कोटा ,
जब कोटा समाप्त हो जायेगा ,
और ना कोई चारा होगा ,
यह भी समाप्त हो जायेगा ,
पंच तत्व में मिल जायेगा ,
छोड़ कर पुराना घर ,
आत्मा भी मुक्त हो जायेगी ,
नये घर की तलाश में ,
जाने कहाँ जायेगी |


आशा

7 टिप्‍पणियां:

  1. "....जब कोटा समाप्त हो जाएगा ,
    और ना कोई चारा होगा ,
    यह भी समाप्त हो जाएगा ,
    पंच तत्व में मिल जाएगा ....."

    यही सच है!

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  2. गहन संवेदनाओं की बेहद मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर
    डोरोथी.

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  3. गूढ़ सत्य जीवन का -
    सुंदर भाव -
    शुभकामनाएं

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  4. जो चिरंतन सत्य है उसीको सोच सोच कर क्यों माथापच्ची की जाए ! इस सत्य से साक्षात्कार हर उस व्यक्ति का एक न एक दिन होगा जिसने जन्म लिया है ! अपनी सोच और कर्म उस पर केंद्रित होने चाहिए जो ना तो और किसी ने सोचा और ना ही किया ! हमारी संघर्ष करने की प्रवृत्ति और जूनून कभी कुंद नहीं पड़ना चाहिए ! रचना अच्छी है लेकिन हताशा की प्रतिध्वनि रास नहीं आई !

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  5. बहुत खूब ... आपने सत्य कहा ... पता नहीं कहाँ जाएगी ...

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