मचा हुआ हाहाकार
सुलगती आग
धुँए का गुबार
और बारूद की गंध
आपस में उलझते लोग
कितना शोर कर रहे हैं
पर हैआर्तनाद कैसा
सोचो ज़रा देखो है कहाँ
शायद कोई पल ठहर गया
देख कर नृशंसता
हृदय हीन लोगों का कृत्य
कुत्सित इरादों का नृत्य
चारों ओर पसर गया है
बाहर झाँको देखो ज़रा
जाने कौन घिसट रहा है
दिखता रक्तरंजित
खूनी होली खेल चुका है
ज़िंदगी से जूझ रहा है
है सहायता अपेक्षित
जाओ वहाँ कुछ मदद करो
शायद वह कुछ बोल रहा है
उसे समझो सहारा दो
है यदि दया भाव शेष
आर्तनाद को समझो
उपचार और दयाभाव
उसे संबल दे पायेंगे
जीवन उसे दे पायेंगे
आखिर क्यूँ रुक गये हो
क्या संवेदना विहीन हो
जो कुछ जग में हो रहा
उससे निस्पृह हो गये हो
यह आर्तनाद
हृदय को छलनी कर देगा
जब भी कभी ख्याल आयेगा
नींद हराम कर देगा
फिर कभी कोई
मदद नहीं माँगेगा
सब जान जायेंगे
हृदयहीनता को
दम तोड़ती संवेदना को
कभी न उबर पाओगे
मन में उठती वेदना से
सोचते ही रह जाओगे
यदि सहायता की होती
संवेदना जीवित होती
उसे जीवन दान मिलाती
पत्नी को पति और
बच्चों को पिता का
स्नेह मिल सकता था|
आशा
,
गहरी सम्वेदना व्यक्त करती रचना
जवाब देंहटाएंआज के युग की असंवेदनशील मानसिकता को झकझोरती सुन्दर और सशक्त रचना ! काश लोगों के मन में परदुख कातरता का यह जज्बा पुनर्जीवित हो उठे और मानवता को जीवनदान मिल सके ! बहुत बढ़िया पोस्ट ! बधाई एवं आभार !
जवाब देंहटाएंआदरणीय
जवाब देंहटाएंआशा जी ...सादर प्रणाम
जीवन के अनुभवों से साँझा की गयी कविता ...सचमुच अपना प्रभाव छोड़ने में सक्षम है ...शुक्रिया
अगर मैं गलत नहीं हूँ तो ये वाराणसी धमाके के बाद आपने लिखी है...अगर नहीं तो भी पढ़ने के बाद उसी की छवि मन में आती है..
जवाब देंहटाएंआशा मां
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम
बहुत बढ़िया पोस्ट ! बधाई
आपने सही सोचा है |बनारस धमाके के बाद ही लिखी है यह कविता |
जवाब देंहटाएंआशा
बनारस की याद करा दी ... दिल दहलाने वाले धमाके की ...
जवाब देंहटाएंअच्छी लगी आपकी रचना बहुत ..
samvedansheel rachna.
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