08 दिसंबर, 2010

संवेदना का ह्रास


मचा हुआ हाहाकार
सुलगती आग
धुँए का गुबार
और बारूद की गंध
आपस में  उलझते लोग
कितना शोर कर रहे हैं
पर हैआर्तनाद कैसा
सोचो ज़रा देखो है कहाँ
शायद कोई पल ठहर गया 
देख कर नृशंसता
हृदय हीन लोगों का कृत्य
कुत्सित इरादों का नृत्य
चारों ओर पसर गया है
बाहर झाँको देखो ज़रा
जाने कौन घिसट रहा है
दिखता रक्तरंजित
खूनी होली खेल चुका है
ज़िंदगी से जूझ रहा है
है सहायता अपेक्षित
जाओ वहाँ कुछ मदद करो
शायद वह कुछ बोल रहा है
उसे समझो सहारा दो
है यदि दया भाव शेष
आर्तनाद को   समझो
उपचार और दयाभाव
उसे संबल दे पायेंगे
जीवन उसे दे पायेंगे
आखिर क्यूँ रुक गये हो
क्या संवेदना विहीन हो 
जो कुछ जग में हो रहा 
उससे निस्पृह हो गये हो
यह आर्तनाद
हृदय को छलनी कर देगा
जब भी कभी ख्याल आयेगा
नींद हराम कर देगा
फिर कभी कोई
मदद नहीं माँगेगा
सब जान जायेंगे
 हृदयहीनता को
दम तोड़ती संवेदना को
कभी न उबर पाओगे
मन में उठती वेदना से
सोचते ही रह जाओगे
यदि सहायता की होती
संवेदना जीवित होती
उसे जीवन दान मिलाती
पत्नी को पति और
बच्चों को पिता का
स्नेह मिल सकता था|


आशा



,

8 टिप्‍पणियां:

  1. गहरी सम्वेदना व्यक्त करती रचना

    जवाब देंहटाएं
  2. आज के युग की असंवेदनशील मानसिकता को झकझोरती सुन्दर और सशक्त रचना ! काश लोगों के मन में परदुख कातरता का यह जज्बा पुनर्जीवित हो उठे और मानवता को जीवनदान मिल सके ! बहुत बढ़िया पोस्ट ! बधाई एवं आभार !

    जवाब देंहटाएं
  3. आदरणीय
    आशा जी ...सादर प्रणाम
    जीवन के अनुभवों से साँझा की गयी कविता ...सचमुच अपना प्रभाव छोड़ने में सक्षम है ...शुक्रिया

    जवाब देंहटाएं
  4. अगर मैं गलत नहीं हूँ तो ये वाराणसी धमाके के बाद आपने लिखी है...अगर नहीं तो भी पढ़ने के बाद उसी की छवि मन में आती है..

    जवाब देंहटाएं
  5. आशा मां
    सादर प्रणाम
    बहुत बढ़िया पोस्ट ! बधाई

    जवाब देंहटाएं
  6. आपने सही सोचा है |बनारस धमाके के बाद ही लिखी है यह कविता |
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  7. बनारस की याद करा दी ... दिल दहलाने वाले धमाके की ...
    अच्छी लगी आपकी रचना बहुत ..

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: