10 दिसंबर, 2010

सब तुम्हें याद करते हैं


तुम्हारी सादगी ने
सदाचरण ने
मुझे जीना सिखाया
मधुर स्वरों ने
गाना गुनगुनाना सिखाया 
पहले कभी गीतों की
नई धुन न बन पाती थी
वही स्वर वही राग
आरोह अवरोह स्वरों का
और भेद स्थाई अंतरे का
सभी तुम से सीख पाया
साज़ जब भी बेसुरा हुआ
स्वर में ला बजाया तुमने
 स्वर में लाना सिखाया तुमने ,
सोचा न था कभी
मंच पर भी जाऊँगा
तुमसे सीखी धुनों को
अपने गीतों में सजाऊँगा
अब जब भी
तालियाँ बजती हैं
प्रोत्साहन मुझे मिलता है
पर मुझसे पहले
तुम्हें याद किया जाता है
क्योंकि मैंने तुमसे
शिक्षा ली है
गुरू शिष्य परम्परा
भी निभाई है
तुमसे ही प्रेरणा ली है
गीतों को नया रंग दे कर
जब भी प्रस्तुत करता हूँ
तुम्हारी सादगी, सदाचार
 मधुर, मन छूती आवाज़
का ही बल मिलता है
सच्ची साधना
संगीत की आराधना
ओर बिंदास प्रस्तुति
सभी सराहे  जाते  हैं
मुझे मंच पर देख
सब तुम्हें याद करते हैं
तुम जैसे लोगों को
सादर प्रणाम करते हैं |


आशा

3 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय आशा माँ
    नमस्कार !
    तुम्हारी सादगी ने ,
    सदाचरण ने ,
    मुझे जीना सिखाया है
    मधुर स्वरों ने ,
    गाना सिखाया है ,
    गुनगुनाना सिखाया है ,
    पहले कभी गीतों की ,
    नई धुन न बन पाती थी ,
    भावपूर्ण रचना अभिव्यक्ति ... आप इतना अच्छा लिखती है.. की पढ़कर मैं भी भावों की दुनिया में खो जाता हूँ .... आभार

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  2. बहुत गहन अभिव्यक्ति, शुभकामनाएं.

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  3. सच्ची भावना एवं ईमानदार श्रद्धा के साथ यह कृतज्ञता ज्ञापन बहुत अच्छा लगा ! सुन्दर और प्रभावपूर्ण प्रस्तुति ! बधाई एवं शुभकामनाएं !

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