दिखाई देता है जैसा
वह उन सब सा नहीं है
बना सँवरा रहता है
पर धनवान नहीं है
दावा करता विद्वत्ता का
चतुर सुजान होने का
कुछ भी तो नहीं है
संतृप्त दिखाई देता
पर हैं अपूर्ण आशाएं
हैं दबी हुई भावनाएं
वह संतुष्ट नहीं है
दिखावा ईमानदारी का
पर लिप्त भ्रष्टाचार में
दोहरा जीवन जी रहा
है विरोधाभास व्यक्तित्व में
वह भी जानता है
पर स्वीकारता नहीं
परिवार की गाड़ी खींच रहा
कितना बोझ उठा रहा है
किस बोझ तले दबा है
कितनों का है कर्ज़दार
यह नहीं जानता
या नहीं स्वीकारता
क्यूँकि वह है
एक आम आदमी
और कोशिश कर रहा है
विशिष्ट बनने की |
आशा
आदरणीय आशा माँ
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
शब्द जैसे ढ़ल गये हों खुद बखुद, इस तरह कविता रची है आपने।
....मेरा ब्लॉग पर आने और हौसलाअफज़ाई के लिए शुक़्रिया..
वास्तव में आदमी दोहरा जीवन जी रहा है आदमी की विवेचना बहुत सुंदर ढंग से की आपने , बधाई
जवाब देंहटाएंएक आम इंसान की मानसिकता का बहुत खूबसूरत चित्रण कर दिया है आपने ! वह सचमुच भ्रमित है और इस सत्य को स्वीकारना नहीं चाहता ! बहुत बढ़िया रचना ! अति सुंदर !
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआज के आदमी का बहुत ही वास्तविक चित्र प्रस्तुत किया है आपने.
जवाब देंहटाएंसादर
bahut sunder likhin hain aap.
जवाब देंहटाएंएक आम आदमी के चरित्र को खोल दिया है आपने ..
जवाब देंहटाएंपर हर आम आदमी ऐसा नहीं है ... ये तो कुछ विशिष्ट आदमियों का चरित्र है जो अपने आप को आम कहते हैं ... बहुत अछा लिखा है ..
ब्लागजगत में आपका स्वागत है. शुभकामना है कि आपका ये प्रयास सफलता के नित नये कीर्तिमान स्थापित करे । धन्यवाद... आप मेरे ब्लाग पर भी पधारें व अपने अमूल्य सुझावों से मेरा मार्गदर्शऩ व उत्साहवर्द्धऩ करें, ऐसी कामना है ।
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी कविता..मन को भाई.
जवाब देंहटाएं________________
'पाखी की दुनिया; में पाखी-पाखी...बटरफ्लाई !!
bahut khoob ......
जवाब देंहटाएंएक आभासी दुनिया में छद्म रूप लिए जीता है आदमी!
जवाब देंहटाएंसत्य कहा....पूर्ण सत्य...
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली रचना..
जवाब देंहटाएंआपलोगों का स्नेह इसी प्रकार बना रहे ऐसीआशा है |ब्लॉग पर आने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंआशा
bahut hi sunder rachna.... kabile tarif
जवाब देंहटाएंआम आदमी पर बहुत अच्छी कविता।
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