13 दिसंबर, 2010

एक आम आदमी


दिखाई देता है जैसा
वह उन सब सा नहीं है
बना सँवरा रहता है
पर धनवान नहीं है
दावा करता विद्वत्ता का
चतुर सुजान होने का
कुछ भी तो नहीं है
संतृप्त दिखाई देता 
पर हैं अपूर्ण आशाएं
हैं दबी हुई भावनाएं
वह संतुष्ट नहीं है
दिखावा ईमानदारी का
पर लिप्त भ्रष्टाचार में
दोहरा जीवन जी रहा 
है विरोधाभास व्यक्तित्व में
वह भी जानता है
पर स्वीकारता नहीं
परिवार की गाड़ी खींच रहा 
कितना बोझ उठा रहा है
किस बोझ तले दबा है
कितनों का  है कर्ज़दार 
यह नहीं जानता
या नहीं स्वीकारता
क्यूँकि वह है
एक आम आदमी
और कोशिश कर रहा है
विशिष्ट बनने की |


आशा

16 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय आशा माँ
    नमस्कार !
    शब्द जैसे ढ़ल गये हों खुद बखुद, इस तरह कविता रची है आपने।
    ....मेरा ब्लॉग पर आने और हौसलाअफज़ाई के लिए शुक़्रिया..

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  2. वास्तव में आदमी दोहरा जीवन जी रहा है आदमी की विवेचना बहुत सुंदर ढंग से की आपने , बधाई

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  3. एक आम इंसान की मानसिकता का बहुत खूबसूरत चित्रण कर दिया है आपने ! वह सचमुच भ्रमित है और इस सत्य को स्वीकारना नहीं चाहता ! बहुत बढ़िया रचना ! अति सुंदर !

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  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  5. आज के आदमी का बहुत ही वास्तविक चित्र प्रस्तुत किया है आपने.

    सादर

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  6. एक आम आदमी के चरित्र को खोल दिया है आपने ..
    पर हर आम आदमी ऐसा नहीं है ... ये तो कुछ विशिष्ट आदमियों का चरित्र है जो अपने आप को आम कहते हैं ... बहुत अछा लिखा है ..

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  7. ब्लागजगत में आपका स्वागत है. शुभकामना है कि आपका ये प्रयास सफलता के नित नये कीर्तिमान स्थापित करे । धन्यवाद... आप मेरे ब्लाग पर भी पधारें व अपने अमूल्य सुझावों से मेरा मार्गदर्शऩ व उत्साहवर्द्धऩ करें, ऐसी कामना है ।

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  8. बहुत प्यारी कविता..मन को भाई.
    ________________
    'पाखी की दुनिया; में पाखी-पाखी...बटरफ्लाई !!

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  9. एक आभासी दुनिया में छद्म रूप लिए जीता है आदमी!

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  10. आपलोगों का स्नेह इसी प्रकार बना रहे ऐसीआशा है |ब्लॉग पर आने के लिए आभार
    आशा

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  11. आम आदमी पर बहुत अच्छी कविता।

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