07 जनवरी, 2011

है कितनी आवश्यकता

है कितनी आवश्यकता ,
चिंतन मनन की ,
आत्म मंथन की ,
कभी इस पर विचार किया ,
क्या सब तुम जैसे हैं ,
इस पर ध्यान देना ,
जब विचार करोगे ,
अनजाने न बने रहोगे ,
सागर से निकले हलाहल
का पान कर पाओगे ,
तभी शिव होगे ,
संसार चला पाओगे ,
यदि थोड़ी भी कमी रही ,
जीवन अकारथ हो जायेगा ,
जिस यश के हकदार हो ,
वह तिरोहित हो जायेगा ,
मन वितृष्णा से भर जायेगा ,
जब जानते हो ,
कोई नहीं होता अपना ,
सारे रिश्ते होते सतही ,
सतर्क यदि हो जाओगे ,
तभी उन्हें निभा पाओगे ,
मन में उठे ज्वार को ,
सागर सा समेट
अपने पर नियंत्रण रख ,
करोगे व्यवहार जब ,
सफल जीवन का ,
मुँह देख पाओगे ,
रत्न तो पाये जा सकते हैं ,
पर गरल पान सरल नहीं ,
जो दिखता है ,
सब सत्य नहीं है ,
जितना गहराई से सोचोगे ,
गहन चिंतन करोगे ,
तभी हो पायेगा ,
कई समस्याओं का समाधान ,
सफल जीवन की होगी पह्चान ,
जो आदर सम्मान मिलेगा ,
जिसके हो सही हकदार ,
उस पर यूँ पानी न फिरेगा |


आशा



,
,

7 टिप्‍पणियां:

  1. मन में उठे ज्वार को,
    सागर सा समेट
    अपने पर नियंत्रण रख ,
    करोगे व्यवहार जब ,
    सफल जीवन का,
    मुंह देख पाओगे ,


    ज्ञानवर्धक रचना -
    शुभकामनाएं .

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  2. आजकल इसी आत्ममंथन पर मै भी लिख रही हूँ…………एक बेहद उम्दा रचना।

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  3. जितना गहराई से सोचोगे ,
    गहन चिंतन करोगे ,
    तभी हो पाएगा ,
    कई समस्याओं का समाधान ,
    सफल जीवन कि होगी पह्चान ,
    जो आदर सम्मान मिलेगा ,
    जिसके हो सही हकदार ,
    उस पर यूँ पानी न फिरेगा |

    updeshatamak rachna....bahut khub
    aage se dhyan rakhunga didi..........:)

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  4. आदरणीय आशा माँ
    नमस्कार !
    है कितनी आवश्यकता ,
    चिंतन मनन की ,
    आत्म मंथन कि ,
    कभी इस पर विचार किया ,
    क्या सब तुम जैसे है ,
    इसपर ध्यान देना ,
    जब विचार करोगे ,
    अनजाने न बने रहोगे
    सागर से निकले हलाहल,
    का पान कर पाओगे ,

    वाह...क्या बात कह दी !!!

    मन में उतर गयी रचना...

    ज्ञानवर्धक बहुत बहुत सुन्दर रचना...

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  5. प्रशंसनीय प्रस्तुति - आभार तथा नव वर्ष की शुभकामनाएं

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  6. कविता में अच्छे भाव हैं पर अधिक व्याख्यात्मक हो गई है।

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  7. आत्म मंथन और आत्म परिष्कार के लिये प्रेरित करती बहुत सुन्दर रचना ! बिलकुल सत्य कह रही हैं आप रत्न पाना सरल है पर गरल पान नहीं ! संसार में सत्य और शिव की स्थापना के लिये शिव की तरह गरल पान तो करना ही पडेगा ! बहुत अच्छी और गहरी रचना ! बधाई एवं आभार !

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