09 जनवरी, 2011

अनजानी

छन-छन छनन-छनन ,
पायल की छम-छम ,
खनकती चूड़ियों की खनक ,
सिमटते आँचल क़ी सरसराहट
कराते अहसास,
पहनने वाली का ,
भूल नहीं पाता मीठा स्वर ,
उस अनजानी का ,
जब भी शब्द मुँह से निकले ,
फूल झरे मधु रस से पगे ,
हँसती रहती निर्झरनी सी ,
नयनों ही नयनों में ,
जाने क्या अनकही कहती ,
उसकी एक झलक पाने को ,
तरस जातीं आँखें मन की ,
वह और उसकी शोख अदायें,
मन को हौले से छू जातीं ,
जाने कब मिलना होगा ,
उस अनजानी मृदुभाषिणी ,
मृग नयनी सुर बाला से ,
आँखें जब भी बंद करूँगा ,
उसे बहुत निकट पाऊँगा ,
उन्मत्त पवन के वेग सा ,
उसकी और खिंचा आऊँगा ,
चंचल चपल अनजानी को ,
और अधिक जान पाऊँगा |


आशा

6 टिप्‍पणियां:

  1. कोमल भावनाओ का सजिव चित्रण।
    सुन्दरतम कविता

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  2. सुंदर अभिव्यक्ति -
    बहुत अच्छी लगी आपकी रचना -
    बधाई एवं शुभकामनाएं -

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  3. कोमल भावनाओं से ओत-प्रोत एक मन मोहिनी प्यारी रचना ! अति सुन्दर ! बधाई एवं आभार !

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत खूबसूरत रचना आशा जी ...

    आपको और आपके परिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ

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  5. .

    चंचल चपल अनजानी को ,
    और अधिक जान पाऊँगा ...

    बेहतरीन कृति।

    .

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